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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२८३

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आल्हखण्ड। २८०

रारि करैया को तुमते है हमहूँलड़िभिड़िगयनअघाय १२०
इतना सुनिकै मलखे बोले मानी बात तुम्हारी भाय॥
दशही चलिहैं अब भौंरिन में आल्है हुकुम दीन फर्माय१२१
मलखे सुलखे देवा आल्हा इन्दल तुरत भयो तय्यार॥
जोगा भोगा मन्ना ब्रह्मा जगनिक भैनचँदेलेक्यार १२२
चढ़ि चढ़ि घोड़ा हाथिन ठाकुर मड़येतर को भये तयार॥
सुमिरि शारदा मइहवाली ऊदनपलकी भे असवार १२३
नरपति राजा के द्वारेपर पहुँचे तुरत बनाफरराय॥
मकरँद ठाकुर सब वीरन को घरके भीतरगयो लिवाय १२४
फाटक बन्दीकरि नरपति ने कन्या तुरत लीन बुलवाय॥
वर औ कन्या इकठोरी भे भौंरिनसमयगयोतहँआय १२५
फुलवा ऊदन का गठिबन्धन नाइनि वारिनि दीन कराय॥
पग परछाल्यो नरपति राजा कन्या दान दीन हरषाय १२६
पहिली भाँवरिके परतै खन सबियाँ शूर गये तहँ आय॥
मारु मारु का हल्ला ह्वैगा येऊ उठे तड़ाका धाय १२७
आधे आँगन भाँवरि होवैं आधे चलन लागि तलवार॥
मारे मारे तलवारिन के आँगन बही रक्तकी धार १२८
कोगति बरणै रजपूतन कै मानैं नहीं नेकहू हार॥
ना मुँह फेरै नरवलवाले नाई मोहबे के सरदार १२९
बड़ी गचापच भै आँगन में मुण्डन लागे ऊंच पहार॥
जोगा भोगा दोनों भाई दोनों हाथ करैं तलवार १३०
बड़ा लड़ैया मकरँद ठाकुर आँगन भली मचाई रार॥
जीति न दीख्यो इन दशहू ते नरपति गयो हियेसोंहार १३१
हाथ जोरिकै नरपति बोल्यो मानो कद्दी बनाफरराय॥