पाजी लरिका मकरन्दा है ज्यहियहदीन्ह्योरारिमचाय १३२
स्याबसिस्याबसि तुमकाआल्हा काहे न बिजयहोय सबकाल॥
मलखे सुलखे जिनके भाई नामी बच्छराजके लाल १३३
मेलजोल भा दुहुँ तरफा ते ह्वैगै मारु बन्द त्यहिकाल॥
सातों भाँवरि फुलवा सँगमें घूमी देशराज के लाल १३४
राजा नरपति के महलन में तुरतै भात भयो तय्यार॥
भयो बुलौवा फिरि क्षत्रिनको पहुँचे मोहबे के सरदार १३५
जेंवन बैठे आल्हा ऊदन तबहूँ चलनलागि तलवार॥
गेडुवा पाटन की मारुन में सबियाँ शूरगये तहँ हार १३६
कीनि नम्रता फिरि नरपतिने बेटी बिदा दीन करवाय॥
दायज दीन्ह्यो भल नरपतिने आल्हासबधनदीनलुटाय१३७
उठी पालकी नृप द्वारेते तम्बुन फेरि पहूँची आय॥
कूचको डङ्का बाजन लाग्यो हाहाकार शब्द गोछाय १३८
खीमा उखरे रजपूतन के सो छकरन में लिये लदाय॥
कूच करायो नखरगढ़ते मोहबे चले शूर समुदाय १३९
बारा दिनका धावाकरिकै दशहरिपुरै पहूँचे आय॥
दगैं सलामी तहँ आल्हाकी सुनवाँचढ़ी अटापरधाय १४०
दीख कबुतरी पर मलखाने बेंदुल चढ़ा लहुरवाभाय॥
आल्हा इन्दल इक हौदा पर सुनवाँ गई द्वारपर आय १४१
पलकी आई तहँ फुलवा की नारिन कीन नेग सबगाय॥
घर के भीतर के जानेकी पण्डितसाइतिदीनबताय १४२
बधू पुत्र घर भीतर गमने द्यावलि रूपन लीन बुलाय॥
जल्दी जावो तुम मोहबे को मल्हनैखबरिजनाबोजाय १४३
इतना सुनिकै रुपना चलिभा मल्हना महल पहूँचाआय॥
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उदयसिंहका बिवाह। २८१
