पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२८४

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उदयसिंहका विवाह । २८१ १३ पाजी लरिका मकरन्दा है ज्यहियहदीन्योरारिमचाय१३२ स्याबसिस्याबसि तुमकामाल्हा काहे न बिजयहोय सबकाल॥ मलखे सुलखे जिनके भाई नामी बच्छराजके लाल १३३ मेलजोल भा दुहुँ तरफा ते हैगै मारु बन्द त्यहिकाल ॥ सातों भावरि फुलवा सँगमें घूमी देशराज के लाल १३४ राजा नरपति के महलन में तुरतै भात भयो तय्यार ॥ भयो बुलौवा फिरि क्षत्रिनको पहुँचे मोहबे के सरदार १३५ जेंवन बैठे आल्हा ऊदन तबहूँ चलनलागि तलवार ॥ गेडुवा पाटन की मारुन में सबियाँ शूरगये तहँ हार १३६ कीनि नम्रता फिरि नरपतिने बेटी बिदा दीन करवाय ।। दायज दीन्ह्यो भल नरपतिने आल्हासबधनदीनलुटाय१३७ उठी पालकी नृप द्वारेते तम्बुन फेरि पहूँची आय ॥ कूचको डका बाजन लाग्यो हाहाकार शब्द गोछाय १३८ खीमा उखरे रजपूतन के सो छकरन में लिये लदाय ॥ कूच करायो नखरगढ़ते मोहबे चले शूर समुदाय १३६ बारा दिनका . धावाकरिके " दशहरिपुरै पहूँचे आय ।। 'दगें सलामी तहँ आल्हाकी सुनवाँचढ़ी अथापरधाय १४० दीख कबुतरी पर मलखाने बेदुल चढ़ा लहुखाभाय ।। आल्हा इन्दल इक हौदा पर सुनवाँ गई द्वारपर आय १४१ पलकी आई तहँ फुलवा की नारिन कीन नेग सबगाय ॥ घर के भीतर के जानेकी पण्डितसाइतिदीनबताय १४२ वधू पुत्र घर भीतर गमने द्यावलि रूपन लीन बुलाय ॥ जल्दी जावो तुम मोहवे को मल्हनखबरिजनावोजाय १४३ इतना सुनिकै रुपना चलिभा मल्हना महल पहूँचााय ॥