पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२८५

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आल्हखएडा २८२ खबार सुनाई सत्र मल्हना को रुपना वारवार शिरनाय १४५ शारह रानी परिमालिक की अपने कीन सबन श्रृंगार ॥ मनियादेवन को सुमिरन करि पलकी उपरभई असवार १४५ आल्हा ऊदनके महलन में रानी गई तड़ाका आय ॥ रूप देखिके तहँ फुलवा को रानिनखुशीभई अधिकाय १४६ विदा माँगिकै न्यवतहरी सब अपने नगर चले ततकाल । बाजत डबा अहतका के पहुँचतभयेनगरनरपाल १४७ पूर मनोरथ भे ऊदन के घर घर भयो मंगलाचार ।। ब्याह पूरमा अव फुलवा का सोये सबै शूरसरदार १४० खेत छूटि गा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाकरकेर ॥ तुम सों ब्रह्मा यह मागतहीं सवविधिअपनिदीनताहेर१४६ नदी भी परवत चहु जंगल में कतहूँ जाय ले अवतार ।। तहँ तहें स्वामी रघुबर होचाहौँ यही सृष्टि कार १५० करों वन्दना पितु अपने की दोऊ हाथ जोरि शिस्नाय ।। आशिर्वाद देउँ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायणभाय १५१ व साहिवी दिन दिन दूनी । औ कविकरें मुयशकोगान ।। ललिते ऐसे नर दुर्बल को करतोकौनऔर सनमान १५२ रहे समुन्दर में जबलों जल जबलों रह चन्द औ सूर ।। मालिक ललितके तबलों तुम यशोरहो सदा भरपूर १५३ माथ नवाबों शिवशंकर को ह्याते करों तरंग को अन्त ॥ राम रमा मिलि दर्शन देखें इच्छा यही भवानीकन्त १५४ इति श्रीलखनऊनिवासिसी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजवाबूगयागनारायण जीर्कीश्राशनुसार उभामप्रदेशान्तर्गतपॅडरीकलांनिवासि मिश्रयशोद्भव दुधकृपा नु पण्डितललिताप्रसादकृतउदनपाणिग्रहणवर्मनानामतीयस्तरंगः॥ ३ ॥ इति रदयसिंहका निबार सम्पती॥5