पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मात अथ आल्हरखण्ड ॥ चन्द्रावलिकी चौथि अथवा वौरीगढ़की लड़ाई ॥ सवैया॥ शेश महेश गणेश रमेश धनेश सुरेश दिनेश मनाई। बावन पावन धोवन को सुखकारि पुरारि धरे सुखपावै ॥ सोई भये जमदग्नि के बंश औ पूरण अंश पुराण बता । वोई भये रघुनन्दन भूप सो रूप लखे ललिते मुद पा १ सुमिरन॥ धन्य बखानों में दिनकर को जिनते पढ़ा बीर हनुमान ॥ तिनके कुलमाँ रघुनन्दन मे जिनकोजानतसकलजहान १ तिनको मानत हम परमेश्वर पूरण ब्रह्म सुरासुरपाल । चारो प्यारे नृप दशरथ के कीन्हेनिवाल रूप जो ख्याल २ सोई धारे उर गिरिजापति मनमें बालरूप के हाल ।। काकभुशुण्डी कौवा तन को मुनि सों मांगि लीनसबकाल ३ कितन्यो राजा सिंहासन तजि इनके परे प्रेम के जाल । सुन्यो विभीषण की गाथा है शरणहिताकत भयो निहाल ४