पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. 2 २ आल्हखपटा २८४ सोई ललिते जब उर आ जा सबै लोक जंजाल ॥ चौथि बखानों चन्द्रावलि की सुनिये ताको पूर हवाल ५ अथ कथामसह ॥ लागो सावन मनभावन जब वर्षन मेघ झमाझम लाग ।। दुःख टिगा नर नारिन का उपजा हिये प्रेम अनुराग १ गड़े हिंडोला सब घर घर हैं दर दर अँड खड़े अधिकार ॥ सावन आवन मनभावन की गावन लागी गीत बहार २ कजली जाहिर मिर्जापुर की सिर्जा जनों वहाँ कार ॥ गड़ें हिंडोला' कोशलपुर में अबहूँ देखें लोग बहार ३ सोई महीना जब आवत भा तब मल्हना को सुनोहवाल ॥ बेटी प्यारी चन्द्रावलि जो ताको शोच करै सब काल ४ नयनन आँसू ढरकन लागे बयनन कढ़े चित्त घबड़ाय ॥ ऐसी हालत भै मल्हना के तबहीं गये उदयसिंहाय ५ लखिअसहालत उदयसिंह तब दोऊ हाथजोरि शिरनाय ॥ पूंछन लागे महरानी ते काहे/गई उदासी छाय ६ सुनिकै बातें उदयसिंह की मल्हना बोली बचन बनाय ॥ याद आयगै लरिकाई के ! सोई बात गई उरछाय ७ ताहि विसूरति मैं ऊदन थी सोई गई उदासी छाय ॥ सखी हमारी एक साथ की पायो दुःख रहे अधिकाय = दुःख याद हो जब काहू को कोमल चित्त जाय घबड़ाय ॥ इतना सुनिक ऊदन बोले माता साँच देउ बतलाय ६ आजुइ तुमका अस देखा ना बहुदिन लखातुम्हें असमाय ॥ की विष देवो उदयसिंह को की दुख देवो सॉच बताय १० करो बहाना चहु केते तुम मानी नहीं लहुरखा भाय ॥