कुशल न होइहै ऊदन जैहैं त्वहिते साँचदेयँ बतलाय २३
कहा न मनिहैं ये काहू का कलहा देशराज के लाल॥
इतना सुनिकै मल्हनारानी सब राजा ते कहा हवाल २४
दोष हमारो कछु नाही है साँची सुनो बात महराज॥
काम न अबरा कछ हमरे घर बिनचन्द्रावलि होयअकाज २५
कहा न हमरो ऊदन मानैं अपनो कहा करैं सबकाल॥
पूँछो इनसे तुम महराजा पासै देशराज के लाल २६
इतना सुनिकै ऊदन बोले सॉची मानो कही हमार॥
खर्चा देवो मोहिं जल्दी अब मैं बौरी का खड़ातयार २७
कहा न मानव हम काहू को यहुतो साँच दीन बतलाय॥
जान न पावव जो बौरीका तौ मरिजाब जहरको खाय २८
सुनिकै बातैं ये ऊदन की निश्चयजानि लीनपरिमाल॥
यहु समझायेते मानीना रिसहा देशराजका लाल २९
यहै सोचिकै मन अपनेमाँ राजा सामा दीन कराय॥
चीरा कलँगी नौ दश तोड़ा सो ऊदन को दियोमँगाय ३०
बाइस हाथी साठि पालकी रथ चौरासी घोड़ हजार॥
यह सब सामा तहँ दीन्ह्यो तुम नाहर उदयसिंह सरदार ३१
दिल्ली ह्वैकै तुम चलिजावो औ मिलि लेउ पिथौरैजाय॥
जौन बतावैं पिरथी राजा तौनै किह्यो लहुरवाभाय ३२
इतना कहिकै गे परिमालिक पहुँचे फेरि राजदबार॥
वस्त्र अभूषण औ मोतिनके मल्हना दीन आयदशहार ३३
भरि भरि मेवा औ कतारूको मल्हना मटुका लीन गाय॥
नाई बारी भाट तँबोली चारो नेगी लीन बुलाय ३४
कहि समुझावा सब नेगिनको औ सब सामा दीन गहाय॥
पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२८९
दिखावट
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४
आल्हखण्ड। २८६
