पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२८९

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आल्हखण्ड | २८६ कुशल न होइहै ऊदन जैहैं त्वहिते साँचदेय बतलाय २३ कहा न मनिहें ये काहू का कलहा देशराज के लाल।। इतना सुनिकै मल्हनारानी सब राजा ते कहा हवाल २४ दोप हमारो कछु नाही है साँची सुनो बात महराज ॥ काम न अबरा कछ हमरे घर बिनचन्द्रावलि होयअकाज २५ कहा न हमरो ऊदन मानें अपनो कहा करें सबकाल ॥ पूँछो इनसे तुम महराजा पास देशराज के लाल २६ इतना सुनिके ऊदन बोले साँची मानो कही हमार॥ खर्चा देवो मोहिं जल्दी अब मैं बौरी का खड़ातयार २७ कहा न मानव हम काहू को यहुतो साँच दीन वतलाय ॥ जान न पाक्व जो बौरीका नौ मरिजाय जहरको खाय - सुनिक बातें ये ऊदन की निश्चयजानि लीनपरिमाल । यहु समझायेते मानीना रिसहा देशराजका लाल २९ य? सोचिकै मन अपनेमाँ राजा सामा दीन कराय।। चीरा कलँगी नौ दश तोड़ा सोजदन को दियोमँगाय ३० बाइस हाथी साठि पालकी ' रथ चौरासी घोड़ हजार ॥ यह सब सामा तहँ दीन्यो तुम नाहर उदयसिंह सरदार ३१ दिल्ली के तुम चलिजावो औ मिलि लेउ पिथौरजाय ।। जौन बता पिस्वी राजा तोंने किहो लहुस्वाभाय ३२ इतना कहिके गे परिमालिक पहुँचे फेरि राजदवार ॥ वस्त्र अभूषण औ मोतिनके मल्हनादीनआयदशहार ३३ भरि भरि मेवा औ कशाको मल्हना मटुका लीन(गाय ।। नाई वारी भाट बोली चारो नेगी लीन बुलाय ३४ कहि समुझावा सब नेगिनको औ सब सामा दीन गहाय ॥