पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२९३

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. आल्हखण्ड | २६० ना मुहिं पठयो परिमालिक ने ना मुहिमल्हनादीनपठाय ७१ मनसे आई चन्द्रावलि को सावन मुहवा देउँ दिखाय ॥ राजा रानी की सम्मत ना अपने बूत चल्यनहममाय ७२ रीछ औ वाँदर सँगमा लेके जीत्यो लङ्क राम महराज ॥ बालनबालनयशुमति लालन लैकै हना कंस शिरताज ७३ छोटो अंकुश मानुष लैकै बैंठे नित्त नाग शिर जाय ।। जहँ मनभावै तहँ लैजावै तेजै सबल पर दिखलाय ७४ सेज न होई ज्यहि देही माँ सो ले करी फौज का माय ।। दया धर्ममाँ कछ अन्तर ना मन्तर साँच देय बतलाय ७५ धरम युधिष्ठिर का जाहिर है अधरम कौरौ गये नशाय ॥ शोटि बनाफर अब जाई ना चहुतनधजीधजीउडिजाय ७६ इतना सुनिकै रानी अगमा मनमाँ ठीक लीन ठहराय ॥ क्यहु समुझायेते मानी ना साँचो । हठी बनाफरराय ७७ बहु धन दीन्यो फिरि ऊदनको आशिर्वाद दीन हर्षाय ॥ पाय लागिकै महरानी के ऊदन कूच दीन करवाय ७८ छाय उदासी गै महलन में तम्बुन अटा बनाफर आय॥ कूच करायो फिरि बगिया ते औ वैरीगढ़ चला दवाय ७६ वारा दिनकी मैजलि करिकै बौरी पास पहूँवे आय॥ एक कोस जब वौरी रहिगै ऊदन तम्बू दीन गड़ाय ८० परा पलँगरा त्यहि तम्बू माँ तापर वैठ बनाफरराय॥ लिखिक चिट्ठी वीरशाहको धावन हाथ दीन पठवाय ८१ वैठक वैठे तहँ क्षत्री सब एकते एक शूर सरदार ॥ चिट्ठी लेके घावन दीन्ह्यो श्रावन पढ़ा बनाफर क्यार ८२ • बड़ी खुशाली वीरशाह करि जोरावरको लीन जुलाय ॥