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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२९४

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चन्द्रावलि की चौथि। २९१

तुम चलिजावो अब बगियाको जहँपर टिका बनाफरराय ८३
आदर करिकै नरनाहर को जल्दी लावो इहाँ बुलाय॥
इतना सुनिकै बुला जुरावर अपने मित्रन सों हरषाय ८४
पाग बैंजनी सब कोइ बँधिये जामा हरे रंग को भाय॥
एकै बाना एक निशाना मिलिये उदयसिंहकोजाय ८५
देखैं किसको पहिले भेंटैं नाहर उदयसिंह सरदार॥
इतना सुनिकै सब मित्रनने एकै रंग कीन शृङ्गार ८६
पंद्रा सोला एकै रँग के बगिया तुरत पहूँचे जाय॥
एकै रँगके सब क्षत्री हैं नहिंकोउ रावरङ्क दिखराय ८७
मिले जुरावरको ऊदन तब निश्चय राजपुत्र अनुमान॥
देखि चतुरता उदयसिंह की सोऊ मनै बहुत शरमान ८८
औ फिरि बोला उदयसिंह ते तुमको नृपति बुलावा भाय॥
इतना सुनिकै बघऊदन तब साथै कूच दीनं करवाय ८९
नचै बेंदुला तहँ मारग में अद्भुत कला रहा दिखराय॥
पाग बैंजनी शिरपर बाँधे यह रणबाघु बनाफरराय ९०
बैठ सिंहासन महराजा जहँ पहुँचा उदयसिंह तहँ जाय॥
चरण लागिकै महराजाके ठाढ़े भये शीशको नाय ९१
पकरिकै बाहू तब ऊदन की तुरतै लीन्ह्यो हृदय लगाय॥
बड़ी खातिरी करि ऊदनकी अपने पास लीन बैठाय ९२
चिट्ठी दीन्ह्यो चंदेले की लीन्ह्यो वीरशाह हर्षाय॥
पढ़िकै चिट्ठी परिमालिक की मनमाँ बड़ा खुशी ह्वैजाय ९३
जो कछु सामा मर्दानाथी ऊदन सबै दीन मँगवाय॥
बड़ी खुशाली भै राजा के फूले अंग न सका समाय ९४
राजा बोला फिरि ऊदन ते मानो कही बनाफरराय॥