पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चन्द्रावलि की चौथि । २६१ तुम चलिजावो अब बगियाको जहँपर टिका बनाफरराय ८३ आदर करिके नरनाहर को जल्दी लावो इहाँ बुलाय ।। इतना सुनिक बुला जुरावर अपने मित्रन सों हरषाय ८४ याग बैंजनी सब कोइ बँधिये जामा हरे रंग को भाय ।। एकै बाना एक निशाना मिलिये उदयसिंहकोजाय ८५ देखें किसको पहिले मैं नाहर उदयसिंह सरदार ।। इतना सुनिक सब मित्रनने एकै रंग कीन शृङ्गार ८६ पंद्रा सोला एकै रंग के बगिया तुरत पहूँचे जाय । एकै रंगके सब क्षत्री हैं नहिंकोउ रावरक दिखराय ८७ मिले जुरावरको ऊदन तब निश्चय राजपुत्र अनुमान ।। देखि चतुरता उदयसिंह की सोऊ मनै बहुत शरमान ८८ औ फिरि बोला उदयसिंह ते तुमको नृपति बुलावा भाय ।। इतना सुनिक बघऊदन तब साथै कूच दीनं करवाय ८६ नचे बेदुला तहँ मारग में अद्भुत कला रहा दिखराय ।। पाग बैंजनी शिरपर बाँधे- यह रणबाघु वनाफरराय ६० बैठ सिंहासन महराजा जहँ पहुँचा उदयसिंह तहँ जाय ।। चरण लागिकै महराजाके ठाढ़े भये शीशको नाय ? पकरिके बाहू तव ऊदन की तुरतै लीन्यो हृदय लगाय।। बड़ी खातिरी करि ऊदनकी अपने पास लीन बैठाय ६२ चिट्ठी दीन्यो चंदेले की लीन्ह्यो वीरशाह हर्षाय ।। पदिक चिट्ठी परिमालिक की मनमाँ बड़ा खुशी लैजाय ६३ जो कछु सामा मर्दानाथी ऊदन सबै दीन मँगवाय ।। बड़ी खुशाली में राजा के फूले अंग न सका समाय ६४ राजा चोला फिरि ऊदन ते मानो कही बनाफरराय ॥