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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२९५

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आल्हाखण्ड। २९२

दिन दश रहिकै तुम बौरी में पाछे बिदा लियो करवाय ९५
कवहूं आयो नहिं बौरी को नाहर उदयसिंह सरदार॥
जायकै भेंटो अब बहिनी को इतनी मानो कही हमार ९६
इतना सुनिकै बघऊदन ने अपने साथ जुरावर लीन॥
जाय बेंदुलापर चढ़िबैठा महलनगमन बेगिहीकीन ९७
अगे जुरावर पीछे ऊदन महलन बेगि पहूँचे जाय॥
चरण लागिकै महरानी के ऊदन सामा दीन मँगाय ९८
देखैं सामा महरानी तहँ औरो नारिन लीन बुलाय॥
देखिकै सामा चंदेले की सबके खुशीभई अधिकाय ९९
मटुका खुलिगे मेवावाले घर घर तुरत दीन बँटवाय॥
दर दर गाथा चंदेले की घर घर रहे नारि नर गाय १००
यकटक देखैं बघऊदन को क्षत्री बड़ा रँगीला ज्वान॥
रूप देखिकै बघऊदन को नारिन छूटिगयो अरमान १०१
जिन नहिं देखा बघऊदन को तेऊ गईं तहाँपर आन॥
जब मुख देखैं बघऊदन को तब चुभिजाय करेजेबान १०२
बेटी प्यारी परिमालिक की भेंटी उदयसिंहको आय॥
लाज ससेटी बेटी भेंटी बैठा सकुचि बनाफरराय १०३
तबलों माहिल दाखिल ह्वैगे औ दरबार पहूॅचे आय॥
किह्यो खातिरी बीरशाह ने अपने पास लीन बैठाय १०४
किह्यो बड़ाई जब ऊदन की माहिल ठाकुर सों महगज॥
माहिल बोले महराजा ते आवत सुने हमारे लाज १०५
किह्यो प्रशंसा तुम ऊदन की जान्यो भेद नहीं महिपाल॥
राज्यते बाहर इनको कीन्ह्यो क्रोधितभयोबहुतपरिमाल १०६
आल्हा रहिगे नैनागढ़ में ऊदन यहाँ पहुँचे आय॥