बिदाकरैहैं ये बेटी को दासी अपनि बनैहैं जाय १०७
खबरि पायकै परिमालिक ने हमको तुरत दीन पठवाय॥
बिदाकरैहैं जो बघऊदन तौ सब जैहैं काम नशाय १०८
ईजति जैहै दोऊ दिशिकी साँचे हाल दीन बतलाय॥
जहर घोराबो तुम भोजन में औ ऊदन को देउ खवाय १०९
बिना बयारी जूना टूटै औ बिन औषधि बहै बलाय॥
चरचा कीन्ह्यो नहिं ऊदन ते मानो साँच यादबाराय ११०
इतना कहिकै माहिल ठाकुर चलिभा करिकै राम जुहार॥
हुकुम लगायो महराजा ने महलन भोजनहोयँ तयार १११
फेरि बुलायो सब पुत्रन को माहिल कथा कह्योसमुझाय॥
बात लेन को ऊदन आयो भोजन जहर देउ डरवाय ११२
छली धूर्त्त को या बिधि मारै तौ नहिं दोष देय संसार॥
खबरि जनाई फिरि महलन में भोजन बेगि भये तय्यार ११३
भयो बुलौवा फिरि भोजन का ऊदन लीन ढाल तलवार॥
देश हमारे कै रीती ना भोजनकरै बाँधि हथियार ११४
शंका लावो कछु मन में ना नाहर उदयसिंह सरदार॥
बातैं सुनिकै बहनोई की ऊदन धरी ढाल तलवार ११५
जायकै पहुँचे फिरि चौकापर नाहर देशराज के लाल॥
साथै बैठे बहनोई के राखे गये परोसे थाल ११६
रक्षक सबको जग एकै है पूरणब्रह्म चराचर राम॥
करै चाकरी नहिं अजगर क्यहु पक्षी करै न केहू काम ११७
अथवा जानो यह साँची तुम मछलिन कौन देय आहार॥
ताल सुखाने चपीं भूमि में रक्षा करैं राम भर्त्तार ११८
भै रघुनन्दन कै दाया तब ऊदन लीन्ह्यो थाल उठाय॥
पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२९६
दिखावट
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११
चन्द्रावलि की चौथि। २९३
