आपन दीन्यो बहनोई को ताको लीन्ह आप सरकाय ११९
यह गति दीख्यो बहनोई जब तब अतिबोल्यो क्रोध बढ़ाय॥
हमरो भोजन तुम कस लीन्ह्यो अपनो दीन्ह्यो हमैं उठाय १२०
इतना सुनिकै ऊदन बोले ठाकुर साँच देयँ बतलाय॥
उचित हमारे यही देशमें सोई कीन यहॉपर आय १२१
इतना सुनिकै इन्द्रसेन ने अपनो पाटा लीन उठाय॥
पीठिम मारा बघऊदन के बोला यह रीति है भाय १२२
देखि तमाशा ऊदन ठाकुर अपनो गडुवा लीन उठाय॥
कुमक आयगै बीरशाह कै परिगो गाँस बनाफरराय १२३
मर्द मर्दईते चूकै चूकै ना चहु निर्दई दई ह्वैजाय॥
नरपुर गाथा घर घर गावैं सुरपुर बास मर्दका आय १२४
कीन मर्दई बघऊदन ने बहुतक क्षत्री दिये गिराय॥
कोठे परते तलवारी को चन्द्राबलिने दीन गहाय १२५
सो लै लीन्ह्यो बघऊदन ने मारन लाग बनाफरराय॥
इकले ऊदन के मुर्चापर कोई शूर नहीं समुहाय १२६
उचित न मारब बहनोई का ऊदन ठीक लीन ठहराय॥
पाय दुचित्ता बघऊदन को बंधन तुरत लीन करवाय १२७
जायकै डार्यो फिरि खन्दक में पहरा चौकी दीन कराय॥
देखि दुर्दशा यह ऊदन कै बहिनी बारबार पछिताय १२८
मन में शोचै मनै बिचारै कासों कहै दुःख अधिकाय॥
तबलों मालिनि पोहपा आई ऊदन कथा गई सब गाय १२९
ऐसो पाहुन ऐखि दुर्दशा हमते कछू कहा ना जाय॥
को समुझावै महराजा को आपन देवे प्राण गँवाय १३०
सुनिकै बातैं ये मालिनि की तब चन्द्रावलि कह्यो सुनाय॥
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आल्हखण्ड। २९४
