पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२९७

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आल्ह खण्ड | २६४ आपन दीन्यो बहनोई को ताको लीन्ह आप सरकाय११९ यह गति दीख्यो बहनोई जब तब अतिवोल्यो क्रोध बढ़ाय॥ हमरो भोजन तुम कस लीन्यो अपनोदीन्ह्यो हमें उठाय १२० इतना सुनिकै ऊदन बोले ठाकुर साँच देय बतलाय ॥ उचित हमारे यही देशमें सोई कीन यहॉपर पाय १२१ इतना सुनिक इन्द्रसेन ने अपनो पाटा लीन उठाय॥ पीठिम मारा बघऊदन के वोला यह रीति है भाय १२२ देखि तमाशा ऊदन ठाकुर अपनो गडुवा लीन उठाय ॥ कुमक आयगै वीरशाह के परिगो गाँस बनाफरराय १२३ मर्द मर्दईते चूकै चूकै ना चहु निर्दई दई लैजाय॥ नरपुर गाथा घर घर गावे सुरपुर वास मर्दका आय १२४ कीन मर्दई वघऊदन ने बहुतक क्षत्री दिये गिराय॥ कोठे परते तलवारी को चन्द्रावलिने दीन गहाय १२५ सो ले लीन्ह्यो वघऊदन ने मारन लाग बनाफरराय ॥ इकले ,ऊदन के मुर्चापर कोई शूर नहीं समुहाय १२६ उचित न मारव बहनोई का ! ऊदन ठीक लीन ठहराय ।। पाय दुचित्ता बघऊदन को बंधन तुरत लीन करवाय१२७ जायकै डाखो फिरि. खन्दक में पहरा चौकी दीन कराय॥ देखि दुर्दशा यह ऊदन के बहिनी वारवार पछिताय १२८ मन में शोचे मनै विचारै कासों कहे दुःख अधिकाय ॥ तबलों मालिनि पोहपा, आई ऊदन कथा गई सब गाय १२६ ऐसो पाहुन ऐखि दुर्दशा हमते कळू कहा ना जाय। को समुझावै महराजा को आपन देवे प्राण गँवाय १३० सुनिकै बातें ये मालिनि की तब चन्द्रावलि कह्यो सुनाय ॥