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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२९८

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चन्द्रावलि की चौथि। २९५

मैं अब देखों जस ऊदन को मालिनितसतुमकरोउपाय १३१
बातैं सुनिकै चन्द्रावलिकी मालिनि कहाबचनसमुझाय॥
निशा अँधेरी है सावन की तुमको ऊदनलवैं दिखाय १३२
इतना सुनिकै मालिनि सँग में ऊदन पास पहूँची जाय॥
बहिनी प्यारी चन्द्रावलि तहँ बोली सुनो बनाफरराय १३३
बाहर आवो तुम खन्दक के अपने घोड़ होउ असवार॥
निर्भय जावो तुम मोहबे को भाई उदयसिंह सरदार १३४
इतना सुनिकै ऊदन बोलैं बहिनी साँच देयँ बतलाय॥
चोरी चोरा जो घर जावैं तौ रजपूती धर्म नशाय १३५
खबरि जो पइहैं सिरसावाले अइहैं तुरत बीर मलखान॥
सुखसों सोवो तुम महलन में करिहैंकुशलमोरिभगवान १३६
इतना सुनिकै बहिनी चलिभै महलन फेरि पहूँची आय॥
लिखी हकीकति सब मलखेको खन्दक परे लहुरवाभाय १३७
लिखिकै पाती सुवना गरमें बांधिकै दीन्ह्यो तुरत उड़ाय॥
जावो सुवना तुम मोहबे को मल्हना महल पहूँचोजाय१३८
उड़िकै सुवना तहँ ते चलिभा नरवरगढ़ै पहूँचा आय॥
मकरँद घूमै ज्यहि बगियामें सुवना बैठ तहाँपर जाय १३९
चकित घूमै मकरन्दा तहँ परिगै दृष्टि सुवापर आय॥
पाती दीख्यो गल सुवना के तुरतै लीन तहाँ पकराय १४०
पढ़िकै पाती लै सुवना को सो नरपतिको दीन दिखाय॥
पाछे पहुँचा फिरि महलन में रानी खबरि जनाईजाय १४१
सुनी हकीकति जब रानी ने पाती गले दीन बँधवाय॥
सुवना चलिभा नरवरगढ़ ते पहुँचा नगर महोबेआय १४२
मल्हना ठाढ़ी रह अणटापर सुवना बैठ तहाँपर जाय॥