पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२९८

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चन्द्रावलि की चौथि । २६५ १३ में अब देखों जस ऊदन को मालिनितसतुमकरोउपाय१३१ बातें सुनिकै चन्द्रावलिकी मालिनि कहावचनसमुझाय॥ निशा अँधेरी है सावन की तुमको ऊदनल दिखाय १३२ इतना सुनिकै मालिनि सँग में ऊदन पास पहूँची जाय । बहिनी प्यारी चन्द्रावलि तहँ बोली सुनो बनाफरराय १३३ बाहर आवो तुम खन्दक के अपने घोड़ होउ असवार ।। निर्भय जावो तुम मोहवे को भाई उदयसिंह सरदार १३४ इतना सुनिक ऊदन बोले बहिनी साँच देय बतलाय ॥ चोरी चोरा जो घर जावे तौरजपूती धर्म नशाय १३५ - खबरि जो पइहें सिरसावाले अइहें तुरत बीर मलखान ।। सुखसों सोवो तुम महलन में करि हँकुशलमोरिभगवान१३६ इतना सुनिकै बहिनी चलिभै महलन फेरि पहूँची भाय । लिखी हकीकति सब मलखेको खन्दक परे लहुखाभाय १३७ लिखिकै पाती सुवना गरमें वांधिक दीन्ह्यो तुरत उड़ाय ॥ जावो सुवना तुम मोहचे को मल्हनामहल पहूँचोजाय१३८ उड़िके सुवना तहँ ते चलिभा निखरगढ़े पहूँचा आय ॥ मकरंद घूमै ज्यहि बगियामें सुवना बैठ तहाँपर जाय १३६ चक्रित धूमै मकरन्दा तहँ परिगे दृष्टि सुवापर आय ॥ पाती दीख्यो गल सुवना के तुरतै लीन तहाँ पकराय १४० पदिक पाती लै सुवना को सो नरपतिको दीन दिखाय । पाछे पहुँचा फिरि महलन में रानी खबरि जनाईजाय १४१ सुनी हकीकति जब रानीने पाती गले दीन बँधवाय ॥ सुवना चलिभा नखरगढ़ ते. पहुँचा नगर महोवेआय १४२ मल्हना गदी रह अपटापर सुवना बैठ तहाँपर जाय ।।