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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२९९

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आल्हखण्ड। २९६

पाती दीखी गल सुवना के मल्हनानामदीनबतलाय १४३
सुन्यो जबानी जब मल्हनाकी सुवना बैठ हाथ पर आय॥
छोरिकै पाती मल्हना रानी आँकुइआँकुनजरिकैजाय १४४
पढ़िकै पाती रानी मल्हना रुपना बारी लीन बुलाय॥
चिट्ठी दीन्ह्यो महरानी ने औसबहालकह्योसमुझाय १४५
लैकै चिट्ठी रुपना चलिभा मलखे पास पहूँचा जाय॥
चिट्ठी दीन्ह्यो मलखाने को औरोहाल गयो सबगाय १४६
पढ़िकै चिट्ठी मलखाने ने तुरतै फौजन कीन तयार॥
जितने क्षत्री रहैं सिरसामें सबियाँबाँधिलीनहथियार १४७
लैकै फौजै मलखाने फिरि पहुँचा नगर मोहोबे आय॥
खबरि पठाई फिरि आल्हाको राजा पास पहूँचे जाय १४८
हाथ जोरिकै मलखे बोले दोऊ चरणन शीश नवाय॥
कीन तयारी हम बौरी को ब्रह्मै साथ देउ पठवाय १४९
सुनिकै बातैं मलखाने की बोले तुरत चँदेलेराय॥
शकुन उठावो देबा ठाकुर, देबो हार जीत बतलाय १५०
सुनिकै बातैं महराजा की ज्योतिष पुस्तक लीन उठाय॥
पाय न उठायो देबा ठाकुर बोल्योहाथजोरि शिरनाय १५१
जायके तुम्हारी बौरी ह्वैहै राजन सत्य दीन बतलाय॥
देखी दु फौजै आल्हा ठाकुर तबगगये तहाँपरआय १५२
मन में दिननायक सों झण्डा गड़ा निशाकोआय॥
तबलों मालिक तब चमकम लागे पक्षी गये बसेरन धाय १५३
ऐसो पाहुन दिया तकि तकि घों घों कण्ठ रहा घर्राय॥
को समुझावै ये रघुनन्दन के सन्तनधुनी दीन परचाय १५४
सुनिकै बातैं ये महोबा अपने को ह्याँते करों तरँगको अन्त॥