पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३०१

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आल्ह खण्ड । २९८ घोड़ी कबुतरी की पीठी पर बैठ्यो सिरसा का सरदार २ चढ़ा मनोहर की पीठी पर देवा मैनपुरी चौहान ॥ ब्रह्मा ठाकुर हरनागर पर बैठे सुमिरि राम भगवान ३ गर्भ गिरावनि कुँवाँ सुखावनि लछिमिनि तोप भई तय्यार॥ दाढ़ी करखा बोलन लागे विपन कीन वेद उच्चार ४ रणकी मौहरि वाजन लागी घूमन लागे लाल निशान ॥ छाय लालरी गै अकाश में लोपे अन्धकार सों भान ५ पहिल नगारा में जिन बन्दी दुसरे बांधिलीन हथियार ॥ तिसर नगाराके वाजत खन हाथी घोड़न भये सवार ६ चौथ नगारा बाजन लाग्यो मलखे कूच दीन करवाय ॥ हाथी चलिमे दल वादल सों घण्टा गरे रहे हहराय ७ कोउ कोउ घोड़ा हंस चालपर कोउ कोउ मोरचालपरजाय॥ सरपट जावै कोउ कोउ घोड़ा केहू टाप न परै सुनाय ८ खर खर खर खर के स्थ दौरे रब्बा चलें पवनकी चाल । मारु मारके - मौहरि बाजे बाजे हाव हाव करनाल ६ बाजें डका अहतङ्का के बड़ा सवै शूर सरदार ॥ शङ्का नाहीं क्यहु जियरे में चहुदिन रातिचलै तलवार १० लश्कर पहुँचा सब दिल्ली में क्षत्रिन कीन तहाँ विश्राम ॥ इकलो मलखे त्यहि समया में पहुँचा पृथीराज के धाम ११ बड़ी खातिरी राजा कीन्ह्यो तहँ पर बैठ वीर मलखान । सवियाँ गाथा बौरीगढ़ की मलखे कीन तहाँपर गान १२. सुनी हकीकति जव मलखे की चौड़ा सूरज लीन बुलाय ।। चिट्ठी दीन्ह्यो पृथीराज ने चौड़े फेरि कह्यो समुझाय १३ कह्यो जवानी वीरशाह ते जल्दी विदा- देय करवाय ।।