सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७
चन्द्रावलि की चौथि। २९९

कलहा लरिका बच्छराज का नामी सबै बनाफरराय १४
लड़िकै जितिहौ तुम इनते ना मरिकै सात धरौ अवतार॥
लैकै फौजै सूरज बेटा मलखे साथ होउ तय्यार १५
बिदा माँगिकै महराजा ते सूरज सिरसा का सरदार॥
आये फौजन में मलखाने सब दल बेगि भयो तय्यार १६
गज इकदन्ता चौंड़ा बैठ्यो सूरज सब्जा पर असवार॥
कूच को डङ्का बाजन लाग्यो हाथिन घोर कीन चिग्घार १७
चलिभइँ फौजैं दल बादल सों बौरीगढ़ै गई नगच्याय॥
आठकोस जब बौरी रहिगै आल्हा डेरा दीन गड़ाय १८
तम्बू गड़िगा तहँ आल्हाका बैठे सबै शूरमा आय॥
आल्हा बोले तहँ देबा ते कहिये करिये कौन उपाय १९
इतना सुनिकै देबा बोला साँची तुम्हैं देयँ बतलाय॥
योगी बनिकै बोरी चलिये तौसबहालठीकमिलिजाय २०
यह मन भाई मलखाने के गुदरी पहिरि लीनततकाल॥
आल्हा देबा ब्रह्मा ठाकुर इनहुनतिलकलगायोभाल२१
लीन बाँसुरी ब्रह्मा ठाकुर खँझरी मैनपुरी चौहान॥
कर इकतारा आल्हा लीन्ह्यो डमरू लीन बीर मलखान २२
चारो चलिभे फिरि तम्बुन ते बौरीगढ़ैं पहूँचे पाय॥
बजी बाँसुरी तहँ ब्रह्माकी देबा खँझरी रहा बजाय २३
टप्पा ठुमरी भजन रेखता मलखे गावैं मेघ मलार॥
को गति बरणै इकतारा कै बाजैं खूब लोह के तार २४
रूप देखिकै तिन योगिन का मोहे सबै नारिनर वाल॥
वात फैलिगै बौरीगढ़ में योगी आये खूब विशाल २५
भा खलभल्ला भो हल्लाअति पहुँचे बीर शाहके दार॥