पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३०३

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आल्हखण्ड । ३०० तजिकै लल्ला चली इकल्ला वल्लन क्यार मनों त्योहार २६ अटाके ऊपर कटा करनको नारिन पैन नैन हथियार ॥ कड़ाके ऊपर छड़ा बिराजै तिनपर पायजेब झनकार २७ कर इकतारा आल्हा लीन्हे नीचे करें तारसों रार ॥ बजे बाँसुरी भल ब्रह्माकै मानो लीन कृष्ण अवतार २८ उपमा नाही शिरीकृष्ण के तीनों लोकन के कार॥ काह हकीकति है ब्रह्मा के पै यह बँसुरी केरि बहार २६ चार्ज सझरी भल देवा के मलखे करें तहाँ पर गान॥ देखि तमाशा तहँ योगिनका लागे कहन परस्पर ज्वान ३० ऐसे योगी हम देखे ना दाढ़ी गई गई सपेदीछाय॥ गङ्गासागर के संगमलों देखा देश देश अधिकाय ३१ वीरशाह तब वोलन लाग्यो चारों योगिन ते मुसुकाय ।। कहाँ ते पायो औ कह जहाँ आपन हाल देउ बतलाय ३२ सुनिकै वाते महराजा की मलखे बोले वचन बनाय॥ ।। हम तो आये प्रागराज ते जावें हरद्वार को भाय ३३ भोजन पावें हम क्षत्रिन घर वृत्ती यह लीन ठहराय ।। होय जनेऊ ज्यहि घर नाही क्षत्री कौन भांति सोयाय ३४ जनमत ब्राह्मण क्षत्री बनियाँ तीनों शूद्र सरिस हैं भाय ॥ होय जनेऊ जव तीनों घर तब वह वर्ष ठीक ठहराय ३५ जो मर्यादा तुम छोड़ा ना तो घर भोजन देउ कराय॥ कलियुग मात्रा महराजा है ताते साफ दीन बतलाय ३६ हम नहिं भोजन करें शूद्र घर चहु मरिजायँ पेटके घाय।। यकस लंघन चट्ठ देजावें पेनहिं सिंघासको खाय ३७ मुनिके बातें ये योगी की भामन खुशी यादवाराय ।।