तजिकै लल्ला चलीं इकल्ला बल्लन क्यार मनों त्यौहार २६
अटाके ऊपर कटा करनको नारिन पैन नैन हथियार॥
कड़ाके ऊपर छड़ा बिराजैं तिनपर पायजेब झनकार २७
कर इकतारा आल्हा लीन्हे नीचे करैं तारसों रार॥
बजै बाँसुरी भल ब्रह्माकै मानो लीन कृष्ण अवतार २८
उपमा नाही शिरीकृष्ण के तीनों लोकन के कर्तार॥
काह हकीकति है ब्रह्मा कै पै यह बँसुरी केरि बहार २९
चाजै खँझरी भल देबा कै मलखे करैं तहाँ पर गान॥
देखि तमाशा तहँ योगिनका लागे कहन परस्पर ज्वान ३०
ऐसे योगी हम देखे ना दाढ़ी गई गई सपेदीछाय॥
गङ्गासागर के संगमलों देखा देश देश अधिकाय ३१
बीरशाह तब वोलन लाग्यो चारों योगिन ते मुसुकाय॥
कहाँ ते आयो औ कहॅ जैहौ आपन हाल देउ बतलाय ३२
सुनिकै बातैं महराजा की मलखे बोले वचन बनाय॥
हम तो आये प्रागराज ते जावैं हरद्वार को भाय ३३
भोजन पावैं हम क्षत्रिन घर वृत्ती यहै लीन ठहराय॥
होय जनेऊ ज्यहि घर नाहीं क्षत्री कौन भांति सो आय ३४
जनमत ब्राह्मण क्षत्री बनियाँ तीनों शूद्र सरिस हैं भाय॥
होय जनेऊ जब तीनों घर तब वह वर्ण ठीक ठहराय ३५
जो मर्यादा तुम छोंड़ा ना तौ घर भोजन देउ कराय॥
कलियुग आवा महराजा है ताते साफ दीन बतलाय ३६
हम नहिं भोजन करें शूद्र घर चहु मरिजायँ पेटके घाय॥
यकइस लंघन चहु ह्वैजावें पैनहिं सिंघासको खाय ३७
सुनिकै बातैं ये योगी की भामन खुशी यादवाराय॥
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आल्हखण्ड। ३००
