सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९
चन्द्रावलि की चौथि। ३०१

औ यह बोला फिरि योगिनते हमहूँ साँच देयँ बतलाय ३८
तुम्हरो हमरो मत एकै है शंका आप देउ बिसराय॥
पतित न क्षत्री कोउ बौरीगढ़ यादव बंश यहां अधिकाय ३९
पापी आयो इक मोहबे ते ताको खन्दक दीन डराय॥
औरन पापी कोउ बौरी में तुमको सांच दीन बतलाय ४०
इतना सुनिकै मलखे बोले ओ महराज यादवाराय॥
कैसो खन्दक कैसो पापी दर्शन हमैं देउ करवाय ४१
कबहूँ खन्दक हम देखाना तुमते साँच दीन बतलाय॥
बड़ी लालसा भै जियरे माँ खन्दकआप देउदिखलाय ४२
इतना सुनिकै महराजा तब योगिन लीन्ह्यो साथ लिवाय॥
जौने खन्दक में ऊदन थे सो महराज दिखावा जाय ४३
ऊदन दीख्यो जब योगिन को नीचे लीन्ह्यो शीश नवाय॥
चारो योगी तहँते चलिभे पहुँचे राजभवन में आय ४४
भयो बुलौवा फिरि भोजन को मलखे बोले बचन बनाय॥
आजु यकादशि निर्जल बर्त्ते राजन साँच दीन बतलाय ४५
करैं बसेरो नहिं बस्ती में जंगल बास करैं सब काल॥
बिदा मांगिकै महराजा ते चारो चलत भये ततकाल ४६
आयकै पहुँचे फिरि फौजनमें अंगड़ खंगड़ धरे उतार॥
सुरँग खुदायो मलखाने ने क्षत्रिन तुरत कीन तय्यार ४७
जौने खन्दक में ऊदन थे फूटो सुरँग तहाँपर जाय॥
सुरँग के भीतर सों बघऊदन पहुँचे फौज आपनी आय ४८
जैसे पियासा पानी पावै तैसे खुशी भये सब भाय॥
बाजे डंका अहतंका के शंका सबन दीन बिसराय ४९
मलखे बोले तहँ आल्हा ते लश्कर कूच देउ करवाय॥