पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३०४

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चन्द्रावलि की चौथि। ३०१ १६ औ यह बोला फिरि योगिनते हमहूँ साँच देय बतलाय ३८ तुम्हरो हमरो मत एकै है शंका आप देउ विसराय ॥ पतित न क्षत्री कोउ बौरीगढ़ यादव बंश यहां अधिकाय ३६ पापी आयो इक मोहवे ते ताको खन्दक दीन डराय ।। औरन पापी कोउ बोरी में तुमको सांच दीन बतलाय ४० इतना सुनिक मलखे बोले ओ महराज यादवाराय ।। कैसो खन्दक कैसो पापी दर्शन हमें देउ करवाय ४१ कबहूँ खन्दक हम देखाना तुमते साँच दीन बतलाय ।। बड़ी लालसा भै जियरे माँ खन्दकआप देउदिखलाय ४२ इतना सुनिकै महराजा तब योगिन लीन्ह्यो साथ लिवाय॥ जौने खन्दक में ऊदन थे सो महराज दिखावा जाय ४३ ऊदन दीख्यो जब योगिन को नीचे लीन्यो शीश नवाय ।। चारो योगी तहते चलिमे पहुँचे राजभवन में आय ४४ भयो बुलौवा फिरि भोजन को मलखे बोले वचन वनाय ॥ आजु यकादशि निर्जल वत्त राजन साँच दीन बतलाय ४५ करें बसेरो नहिं बस्ती में जंगल वास कर सब काल ॥ विदा मांगिकै महराजा ते चारो चलत भये ततकाल ४६ आयकै पहुँचे फिरि फौजनमें अंगड़ खंगड़ धरे उतार ।। सुरंग खुदायो मलखाने ने क्षत्रिन तुरत कीन तय्यार ४७ जौने खन्दक में ऊदन थे फूटो सुरंग तहाँपर जाय ।। सुरंग के भीतर सों वघऊदन पहुँचे फौज आपनी आय ४८ जैसे पियासा पानी पाव तैसे खुशी भये सब भाय । बाजे डंका अहतका के शंका सबन दीन विसराय ४६ मलखे बोले तह आल्हा ते लश्कर कूच देउ करवाय॥ ।