पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३०५

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आल्हखण्ड । ३०२ विदा करावें चन्द्रावलि को तब यश जाय जगतमेंछाय ५० इतना सुनिकै आल्हा ठाकुर बोले करौ यह अब भाय॥ हुकुम पायकै यहु आल्हा को मलखे कूच दीन करवाय ५१ चलिमें फौजें दलवादल सों बौरीगढ़े गई नगच्याय ॥ प्रलय मेघ सम व. नंगारा हाहाकार शब्द गा छाय ५२ गा हरिकारा तब बौरी में राजे खबरि जनाई जाय॥ फाजे आईं क्यहु राजा की बोरी डांड दबायनि आय ५३ सुनिक बातें हरिकाराकी राजा गयो सनाकाखाय ॥ मलखे बोले ह्यां रूपन ते कहियो बीरशाह ते जाय ५४ सुरुंग खोदिकै बघऊदन को आल्हा ठाकुर लीन निकारि ॥ विदा कराये बिन जैहें ना ताते करो नहीं तुमरारि ५५ वहिनी व्याही तुम्हरे घरमाँ ताते क्षमाकीन यहिवार ॥ नहिं अस ठाकुर को जन्माजग जाते मानि लीन हमहार ५६ इतना सुनिकै रूपन चलिभा वौरीगढ़े वौरीगढ़े पहूँचा जाय ॥ खबरि सुनाई महराजा को, जो कछु कह्यो वनाफरराय ५७ सो नहिं भाई वीरशाह मन वोल्यो तुस्त वचन ललकार ॥ काह हकीकति है आल्हा के आवें विदा करावन द्वार ५८८ हछ नहिं छोड़यो दुर्योधन ने औ मरिगयो सहित परिवार ।। खवारि जनावो तुम आल्हा को हमरे साथ करें तलवार ५६ इतना सुनिक रूपन चलिमे फौजन फेरि पहूँचे आय ।। कही हकीकति वीरशाह की सुनि जरि उठे बनाफरराय ६० हुकुम लगायो निज फौजनमें सवियां शूर होय तय्यार ॥ हुकुम पायके मलखाने को क्षत्रिन बांधिलीन हथियार ६१ गजे चया गजपर चदिगे बाँके घोड़न भे असबार।