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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३०८

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चन्द्रावलि की चौथि। ३०५

पै हम त्यागी अनुरागीता लागी आश नारिधनबीच ८६
आपै त्यागी अनुरागीना तौ कस कहै नारिधन कीच॥
साँच बखानैं हम अपनीदिशि सोई सकल नरनमें नीच ८७
पै यहु कलियुग बाबा आयो छायो रहै मनै संताप॥
मन नहिं इस्थिर क्षणहू होवै कैसे होय मुनिन में थाप ८८
जपतै माला गायत्री के आला परब्रह्म के ध्यान॥
यहु मन काला भाला मारै जो सब इन्द्रिनमें बलवान ८९
नीच न कहिये यहि कालामें जो कोउ साँच बिप्रको बाल॥
युग यहु पाजी बदिकै बाजी राजानलको किह्योबिहाल ९०
एसे पाजी की राजी में सूरज बीरशाह का लाल॥
जायकै पहुँच्यो समरभूमि में अब मलखेका सुनो हवाल ९१
सो जब दीख्यो आसमानको छाई खब गर्द गुब्बार॥
हँसिकै बोला रणशूरन ते सँभरो सबै शूर सरदार ९२
इतना कहतै फौजै आई तोपन होनलागि तहँ मार॥
अररर अररर तोपैं छूटीं हाथिन घोर कीन चिग्घार ९३
को गति बरणै त्यहि समयाकै भारी भयो भयङ्कर मार॥
जावैं गोला जौनी दिशिको तौनी दिशिकोकरैं चिथार ९४

सवैया॥


भभकार उठैं तहँ गोलन की फुफकार करैं रण में गजराजा।
धुधकार नगारनकी गमकी चमकी तलवारि जुरे सबराजा॥
अपार जुझार करैं तहँ मार न डरैं मन नेकहु एकहुसाजा।
समाजऔसाजदोऊदिशिमें अवलरैंललितेसबहीजयकाजा ९५



षड़ी लड़ाई भै तोपन कै लोपे अन्धकार सों भान॥

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