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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३१०

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चन्द्रावलि की चौथि। ३०७

बिदा कराये बिन जैबेना चहुतनधजीधजीउड़िजाय १०८
सूरज बोले मलखाने ते यह नहिं होनहार यहिबार॥
इतना कहिकै सूरज ठाकुर अपनी खैंचिलीनतलवार १०९
ऐंचिकै मारा मलखाने के मलखे लीन ढालपर वार॥
आल्हा बोले मलखाने ते ठाकुर सिरसा के सरदार ११०
पकरिकै बाँधो तुम सूरज को इनपर करो नहीं अब वार॥
गरुहर नाते के लड़िकाहैं मानों सिरसाके सरदार १११
सुनिकै बातैं ये आल्हा की तुरतै उतरिपरा मलखान॥
पकरिकै बाँध्यो रणमण्डल में देखैं खड़े अनेकन ज्वान ११२
सूरज बन्धन दीख जुरावर पहुँचा तुरत तहाँ पर आय॥
औ ललकारा मलखाने को ठाढ़े होउ बनाफरराय ११३
इतना सुनिकै बघऊदन ने तुरतै पकरि जुरावर लीन॥
उतरि कबुतरी ते मलखाने बन्धनतुरत तहाँपर कीन ११४
दूनों लरिका बीरशाह के आल्हााकुर लीन बँधाय॥
भागीं फौजैं बौरीगढ़ की काहू धरा धीर ना जाय ११५
खबर सुनाई बीरशाह को क्षत्रिन नीचे शीश नवाय॥
बन्धन सुनिकै द्वउ पुत्रन को दुखिया भयो यादवाराय ११६
इन्द्रसेन औ मोहन बेटा इनको तुरत लीन बुलवाय॥
हाल बतायो समरभूमि को आशिर्बाद दीन हर्षाय ११७
करो तयारी सब भाइन सह आल्है पकरि दिखावो आय॥
इतना सुनिकै सबियाँ बेटा चलिभे राजै शीश नवाय ११८
आयकै पहुँचे निज सेनन में डंका तुरत दीन बजवाय॥
बाजे डंका अहतंका के हाहाकार शब्द गा छाय ११९
पहिल नगारा में जिन बन्दी दुसरे शूर भये हुशियार॥