पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३११

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आल्हखण्ड। ३०८ तिसर नगारा के बाजत खन क्षत्री समर हेतु तैयार १२० दाढ़ी करखा बोलन लागे विपन कीन वेद उच्चार॥ रण की मोहरि बाजन लागी रणका होनलाग व्यवहार १२१ चलिभै सेना वौरीगढ़ सों हाहाकारी परै सुनाय ॥ घरी मुहूरत के अन्तर में पहुंचे समरभूमिमें आय १२२ आल्हा ऊदन मलखे सुलखे देवा मैनपुरी चौहान ॥ सब रणशूरन त्यहि समया में भारी भीर दीख मैदान १२३ उड़ी कबुतरी मलखाने की हौदन उपर पहूँची जाय । मलखे मारै तलवारिन सों घोड़ी देय टापके घाय १२४ मोहन ठाकुर उदयसिंह को परिंगा समर बरोबरि आय ॥ भई कसामसि समरभूमि में औतिलडरा भुई ना जाय१२५ को गति वरणे रजपूतन के दूनों हाथ करें तलवार ॥ मुण्डन केरे सुड़चौरा मे औ रुण्डन के लगे पहार १२६ जैसे भेडिन भेड़हा पैठे जैसे अहिर विहार गाय ॥ तैसे मारै मलखे अकुर, कायर भागें पीडदिखाय१२७ है मर्दाना जिनको वाना. ते नर करें तहाँ पर मार ।। को गति वरणे इन्द्रसेन के दूनों हाथ करें तलवार १२८ बड़े लडैया चौरी वाले माने नहीं समर में हार ।। ना मुँह फेरै मोहबे वाले दोऊ कठिन मचाई सर १२६ गिरे कगारा जस नदिया माँ तैसे गिरें ऊंट गज धाय ।। परी लहासे रणशूरन की तिनपर रहेगीध मड़राय१३० गोली ओली कतहूँ वरसँ कतहूँ कठिन चले तलवार । हरी कटारी कोऊ मार कोऊ कड़ाबीन की मार १३१ गदा के ऊपर गदा चलाने दालन मारें दाल घुमाय॥