पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३१३

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- आल्हखण्ड़ा ३१० तुम ससुझावो महराजा को काहे गरि करें नरपाल १४२ इतना सुनिकै इन्द्रसेन ने गर्मीई हाँक कीन ललकार ॥ काह हकीकति तुम राखतिहाँ जावो विदाकरावन द्वार १४३ इतना कहिकै इन्द्रसेन ने अपनी बँचि लई तलवार ।। दौरिक पकरयो उदयसिंह ने मलखे वाँधिलीनत्यहिवार१४४ देखिकै बन्धन इन्द्रसेन को मोहनआयगयो त्यहिकाल । मारन लाग्यो रजपूतन को मोहन वीरशाहका लाल १४५ औरो भाई जे मोहन के तेऊ करनलागि तलवार । झुके सिपाही बौरीवाले लागे करन भडाभड़मार १४६ पैदरि पैदरि के वरणी भै औ असवार साथ असवार । ' बड़ी लड़ाई हाथिन कीन्ह्यो घोड़न कीन टापकीमार १४७ लीन्हे साँकरि दल बादलसों हाथी करत फिरै चिग्धार ॥ भाला छूटें असवारन के पैदल खूब चले तलवार १४८ झुके सिपाही मोहवेवाले इनहुन कीन घोर घमसान ॥ चौड़ा वाम्हन के मुर्चा में कोऊ शूर नहीं समुहान १४६ सोहै चौंडिया इकदन्ता पर हाथम लिये ढाल तलवार । मोहन ठाकुर वौरी वाला सब्जा घोड़ापर असवार १५० हनि हनि मारै रजपूतन का गई हाँक देय ललकार ॥ अभिरे क्षत्री अरझ्वारा सों आमाझ्वारचले तलवार १५१ जौने हौदा ऊदन ताके -दुल वहाँ पहुँचे जाय ।। ऊदन मारें तलवारिन सों बेंदुल टापन देई गिराय १५२ भाला चमकै तहँ देवा का मोहन केरि चले तलबार ।। घोड़ी कबुतरी का चढ़वैया मलखे सिरसाका सरदार १५३ कायर भागे लिहे परान ॥ मारि गिराये रजपूतन का