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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३१६

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चन्द्रावलि की चौथि। ३१३

चिट्ठी दीन्ह्यो सो आल्हा को ठाढ़ो भयो शीशकोनाय १७८
लागि कचहरी तहँ आल्हा कै रुमि झुमि रहीं पतुरियानाच॥
आल्हा बाँचन चिट्ठी लागे ह्वैगा रंग भंग तहँ साँच १७९
पढ़िकै चिट्ठी आल्हा ठाकुर सबको दीन्ह्यो हाल बताय॥
माहिल ठाकुर की किरपा ते इतना परा परिश्रमआय १८०
फिकिरिम माहिल हैं ऊदनकी निश्चय समुझि परै यहिबार॥
जाको रक्षक रघुनन्दन है ताको जाय न बाँकोबार १८१
इतना कहिकै आल्हा ठाकुर बन्धन तुरत दीन छुड़वाय॥
कहि समुझायो सबलरिकन ते राजै खबरि जनावो जाय १८२
ब्रह्मा आवत इन्द्रसेन सँग इनका बिदा देयँ करवाय॥
माहिल मामा हमरे लागैं तातेकिहिनिदिल्लगीआय १८३
त्यहिमा सज्जन तुम महराजा सोऊ दया दीन बिसराय॥
क्षम्यो ढिठाई अब हमरी तुम तुम्हरीशरणगये हमआय १८४
नातेदारी में उत्तमहौ आहिउ कृष्णवंश महराज॥
गुरू श्वशुर सों संगर ठानैं क्षत्री जन्म युद्धके काज १८५
इतना कहिकै आल्हा ठाकुर सबको बिदा कीन ततकाल॥
ब्रह्मा पहुँचे बीरशाह घर औंसबकह्यो बनाफरहाल १८६
सुनिकै बातैं सब आल्हा की राजा बिदा दीन करवाय॥
बैठि पालकी में चन्द्रावलि गौरा पारवती को ध्याय १८७
बहुधन दीन्हो ब्रह्मा ठाकुर महरन पलकी लीन उठाय॥
दशहूँ लरिकन सों महराजा आये जहाँ बनाफरराय १८८
आवत दीख्यो वीरशाह को आल्हा मिले अगारी आय॥
मिला भेंटकरि सबसों राजा अपने धाम गये हर्षाय १८९
बाजे डंका अहतंका के आल्हा कच दीन करवाय॥