पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३१७

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भाल्हखण्ड। ३११ चौड़ा सूरज दिल्ली पहुँचे आल्हागये मोहोबे आय १६० वेटी पहुँची जब महलनं में मल्हना मिली अगाडीधायः॥ वारहु रानी परिमालिक की बेटी देखि गई हरपाय १६१ सावन भावन गावन लागी आवन लागि विदेशी ज्वान॥ मल्लन कल्लन फरकन लागे थिरकनलागिमेघअसमान१६२ दादुर बोलन जलमें लागे विरहिन उठी करेजे पीर ॥ विना पियारे घर पीतम के कैसे धरै नारि मनधीर १६३ सवैया॥ कैसे धरै मनधीर तिया परदेश पिया ज्यहि सावन छाये। । राग औरङ्ग अनंग कि जंग उमंग भैरै पियकी सुधिआये ॥ गात सवै तियके सकुचात विदेश परे पिय पेट खलाये। कहाकहैं ललिते विधिनीति अनीति किरीति सदादरशाये १६४ गर्दै सुहागिल सब सावन में वारामासी मेघ मलार ।। गड़े हिंडोला हैं घर घर में दर दर सावन केरि बहार १६५ काग उड़ावन उनघर लागी जिन घर परे पिया परदेश ।। सावन राक्न उनके लागे जिनके चिट्ठीके अन्देश १६६ नहीं तो सावन अतिपावन है गावन गीत क्यार त्यवहार ।। हमैं सुहावन मनभावन है सावनक्यारसकलव्यवहार१९७ चौथि पूरिभ चन्द्रावलि के ह्यॉते होय तरंग को अन्त ॥ राम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरिभगवन्त १६८ खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गढ़ा निशा को आय । तारागण सव चमकन लागे सावन मेघ रहे घहराय १६६ कहूँ कहुँ तारा कहूँ कहुँ बादल नभह भयो कलियुगी भाय॥