चौड़ा सूरज दिल्ली पहुँचे आल्हा गये मोहोबे आय १९०
बेटी पहुँची जब महलन में मल्हना मिली अगाड़ी धाय॥
बारहु रानी परिमालिक की बेटी देखि गई हर्षाय १९१
सावन भावन गावन लागीं आवन लागि विदेशी ज्वान॥
मल्लन कल्लन फरकन लागे थिरकनलागिमेघअसमान १९२
दादुर बोलन जलमें लागे बिरहिन उठी करेजे पीर॥
बिना पियारे घर पीतम के कैसे धरै नारि मनधीर १९३
सवैया॥
कैसे धरै मनधीर तिया परदेश पिया ज्यहि सावन छाये।
राग औरङ्ग अनंग कि जंग उमंग भरै पियकी सुधिआये॥
गात सबै तियके सकुचात बिदेश परे पिय पेट खलाये।
कहाकहैं ललिते बिधिप्रीति अनीति किरीति सदादरशाये १९४
गवैं सुहागिल सब सावन में वारामासी मेघ मलार॥
गड़े हिंडोला हैं घर घर में दर दर सावन केरि बहार १९५
काग उड़ावन उनघर लागीं जिन घर परे पिया परदेश॥
सावन रावन उनके लागै जिनके चिट्ठीके अन्देश १९६
नहीं तो सावन अतिपावन है गावन गीत क्यार त्यवहार॥
हमैं सुहावन मनभावन है साबनक्यारसकलव्यवहार १९७
चौथि पूरिभै चन्द्रावलि कै ह्यॉते होय तरॅग को अन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरि भगवन्त १९८
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशा को आय॥
तारागण सब चमकन लागे सावन मेघ रहे घहराय १९९
कहूँ कहुँ तारा कहूँ कहुॅ बादल नभहू भयो कलियुगी आय॥