पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३१८

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चन्द्रावलि की चौथि। ३१५ आशिर्वाद देउँ मुन्शीसुत जीवो प्रागनरायणभाय २०० रहै समुन्दर में जबलों जल जवलों रहैं चंद औ सूर ॥ मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहौ सदा भरपूर २०१ माथ नवाबों पितु अपने को मन में रामचन्द्र को ध्याय ॥ तुम्ही खेवैया हो नैयाके भो रघुरैया होउ सहाय २०२ माघ कृष्ण तिथि श्रीगणेशकी ताते वार वार पदध्याय ॥ सम्बत वनइस सै पचपन में पूरो भयो आज अध्याय २०३ इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुशीनवलकिशोरात्ममवाबूमयागनारायण जीकी आज्ञानुसार उन्नामपदेशान्तर्गत पँडरीकलांनिवासि मिश्रवंशोद्भवबुर उपाशङ्करसूनु पण्डितललितामसादकृत चन्द्रावलिचौधिपूर्णवर्णनबाक द्वितीयस्तरंगः॥२॥ चन्द्रावलि की चौथि सम्पूर्ण ॥ ॥ इति॥