तुम्ही गुसैयाँ दीनबन्धु हौ ओ ब्रह्मण्यदेव ब्रजराज॥
लाज रखैया बाम्हन तनकी साँचे एक कृष्ण महराज ४
शरणहि ताकत बिप्र सुदामा पायो सकल सम्पदा राज॥
छूटि सुमिरनी गई कृष्ण की इन्दल ब्याह बखानों आज ५
अथ कथाप्रसंग॥
परब दशहरा की जग जाहिर बुड़की हेतु जाय संसार॥
भारी मेला श्रीगंगा को हिंदुनक्यार पूर त्यवहार १
बहुतक छैला अलबेला तहँ घोड़न उपर भये असवार॥
करी तयारी श्रीगंगा की चक्कस लिये बुलबुलनक्यार २
जेठदुपहरी आरी ह्वैकै ब्यारी करैं बृक्षतर आय॥
देखि गँवाँरी तहँ नारी नर बोला तुरत बनाफरराय ३
कहाँ तयारी नर नारी करि ब्यारी किह्यो यहाँपर आय॥
देखि बनाफर को नर नारी बोले साँच देयँ बतलाय ४
कीन तयारी हम विठूर की भारी पर्ब दशहरा केरि॥
चकित ह्वैकै ऊदन दीख्यो चारिउ दिशातरफ फिरिहेरि ५
भारी मेला अलबेला तो रेला चला जाय सबराह॥
घोड़ बेंदुला का चढ़वैया आयो जहाँ बैठ नरनाह ६
हाथ जोरिकै तहँ आल्हा के ऊदन बोले शीश नवाय॥
करैं तयारी हम गंगा की दादा हुकुमदेउ फरमाय ७
इतना सुनिकै आल्हा बोले साँची सुनो लहुरवा भाय॥
देश देशके राजा अइहैं होई भीर भार अधिकाय ८
रारि मचैहौ तुम मेला में हमपर परी आपदा आय॥
ताते जावो नहिं मेला को मानो कही लहुरवा भाय ९
इतना सुनिकै माहिल बोले तुम सुनिलेउ बनाफरराय॥