भारी मेला है बिठूर का जो तुम जैहौ पूत हिराय २२
हौ इकलौता म्बरी कोखि में ताते मोर प्राण घबड़ाय॥
इतना सुनिकै इन्दल बोले माता साँच देयँ बतलाय २३
जान न पावैं जो गंगा को तौ मरिजायँ जहरको खाय॥
हुकुम देवावै की ददुवाते की अब घरै बैठि पचिताय २४
सुनिकै बातैं ये इन्दल की सुनवाँ गई सनाका खाय॥
गई तड़ाका ढिग आल्हा के इन्दल हाल बतावा जाय २५
बातैं सुनिकै सब सुनवाँ की आल्हा बोले वचन सुनाय॥
लिखी विधाता की मेटै को अब तुम देवो पूत पठाय २६
जहर खायकै जो मरिजाई तौहू शोच होय अधिकाय॥
पार लगैहैं श्रीगंगाजी यहमत ठीक लीन ठहराय २७
इतना सुनिकै सुनवाँ चलिभै इन्दल पास पहूँची आय॥
औं बुलवायो बघऊदन को सवियाँहालकह्योसमुझाय २८
इन्दल बिगरे हैं महलन में गंगा इन्हैं देउ अन्हवाय॥
पै हम सौंपति त्वहिं इन्दलको देवर बार बार शिरनाय २९
किह्यो बखेड़ा नहिं मेला में रेला होय तहाँ अधिकाय॥
वहाँ न जायो इन्दल लैकै मान्यो कही बनाफरराय ३०
इतना सुनिकै ऊदन इन्दल दोऊ चलिभे शीश नवाय॥
जायकै पहुँचे फिरि फौजन में लश्कर कूच दीन करवाय ३१
बायें घोड़ा है देबा का दहिने बेंदुल का असवार॥
बीच म जावै इन्दल ठाकुर कम्मर परी एक तलवार ३२
पांच दिनौना मारग लागे छठवें दिवस पहूंचे जाय॥
भारी मेला भा बिठूर माँ आवा तहां कनौजीराय ३३
बाजै डंका तहँ ऊदन का लाखनि धावन लीन बुलाय॥
पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३२३
दिखावट
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४
आल्हखण्ड। ३२०
