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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३२४

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इन्दलहरण। ३२१

कहि समुझावा त्यहि धावनको डंका बन्द देउ करवाय ३४
हुकुम कनौजी का नाहीं है डंका कोऊ बजावै आय॥
इतना सुनिकै धावन चलिकै डंका बजत दीन रुकवाय ३५
कहा न मान्यो जब बरऊदन देबा ठाकुर उठा रिसाय॥
तुम्हैं मुनासिब यह चहिये ना सबसों बैर बढ़ावो भाय ३६
चालकै मिलिये अबलाखनिसों उनसों हुकुम लेउ करवाय॥
हीनी तुम्हरी कछु ह्वैहै ना मानो कही बनाफरराय ३७
सुनिकै बातैं ये देबा की ऊदन मानिंगयो त्यहिकाल॥
पाँच दुमाला दुइ हीरा लै चलिभा देशराजका लाल ३८
नचै पतुरिया त्यहि तम्बूमें ज्यहिमें रहें कनौजीराय॥
ऊदन ठाकुर तहँ पहुँचतभा राखी भेंट अगाड़ी जाय ३९
हाथ पकरिकै लाखनिराना अपने पास लीन बैठाय॥
कही हकीकति बघऊदन ने लाखनिहुकुमदीनफरमाय ४०
बाजै डंका इक ऊदन का औरन बन्द देउ करवाय॥
इतना सुनिकै ऊदन चलिभे तम्बुन फेरि पहूंचे आय ४१
सुनो हकीकति अभिनन्दनकी हंसा ताको राजकुमार॥
त्वहिकी बेटी चित्तररेखा मेला हेतु भई तय्यार ४२
नटिनी सँगमें त्यहि बेटी के जादू क्यार जिन्हैं बयपार॥
बलखबुखारे को राजा जो त्यहिअभिनन्दननामउदार ४३
त्यहि का बेटा हंसाठाकुर चलिभा बहिनी साथलिबाय॥
सबालाख लश्कर को लैकै ब्रह्मावर्त्त पहूँचा आय ४४
तम्बु गड़िगे त्यहि रेती माँ भारी ध्वजारही फहराय॥
संग सहेली त्यहि बहिनी की बोलीं बेटी वचन सुनाय ४५
चलिये हनवन जल्दी करिये अब दिनगयो यामभरआय॥

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