पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३३

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२८ आल्हखण्ड। संवैया ।। तीर छुट्टै पृथराज कमान सों ते बहु शूरन के शिरकाटें। भूमिश्रकाशनदेखिपरै शिरोभुनसों सवही दिशिपा ॥ मत्त गयन्द गिर हहराय बजायकै ताल सबै नर डाटें। शूरनकी ललकार सुने ललिते सबकायरके हियफा ३९ Sp- भये सनाका कायर मनमाँ शान रहा मोद अतिछ बड़ी लड़ाई में कनउज माँ कोउ रजपूत न रोंके पार स्कतक्रिनदियातहँ बहिनिकरी जूझे बड़े बड़े सरद हाथी गिरिगे आस पास माँ सोहैं मानो नदी कगा छूरी मछली सम सोहत भई ढालें कछुवा सम उतर भुजा नौ जॉधैं रणशूरन की गोहै सरिस वही तहँ जा बहै सिवारा जस नदिया माँ तैसे तहाँ वार उता वह लहासे जो शान की तिनमाचढ़े गिद्धगजारे जैसे डोंगिया माँ चदिक नर खेलें नदी नेवारा के तैसे लहासे रण शूरनकी तिनपरचील्ह कागउतरा तीन दिनौना याविधि गुजरे तहपर खूब चली तल नाई हारे दिल्ली वाले ना उइ कनउज के सरद आगे बदिक पृथुइराज ने गर्मीई हांक दीन लल बात हमारी तुम सुनिलेवो राजा कनउज के सरद डोला भँगावो संयोगिनि को सो रण खेनन देउ जीति विधाता जाको देई सो डोलाको ल्यई उठा वाम्हन केरी बहवस्ती है ओ महराज कनौजी होई लड़ाई पुर भीतर में परजे दुःखमिली अधिक