हाथ जोरिकै ऊदन बोले चरणन बार बार शिरनाय १०४
मोहलति पावों छा महिना कै इन्दल खोजिदिखाओं आय॥
इतना सुनिकै आल्हा जरिगे अपनो कोड़ा लीनउठाय १०५
पीटन लाग्यो जब ऊदन को सुनवाँ सुनत गैई तहँ आय॥
कहि समुझायो सो आल्हाको आल्हातुरतदीन दुरियाय १०६
टरिजा टरिजा री सम्मुख ते नहिं शिरकाटिदेउँ भुइँ डारि॥
ऊदन मारा है इन्दल को साँचीखबरि मिलीम्बहिंनारि १०७
सुनवाँ बोली फिरि आल्हाते साँची सुनो बनाफरराय॥
हम तुम जी हैं जो दुनिया में ह्वैहैं पुत्र नाथ अधिकाय १०८
मिली सहोदर फिरि भाई ना आई कौन साँकरे काज॥
सुन्दरगढ़ को चाचा हमरो तुमको कैदकीन महराज १०९
बनि सौदागर उदयसिंह ने तुम्हरी कैद दीन छुड़वाय॥
बराबरस के ऊदन ठाकुर माड़ोलीन बापका दायँ ११०
लड़ि गजराजा सों ऊदन ने मलखे ब्याह दीन करवाय॥
नरपति राजासों लड़िकै फिरि फुलवालये लहुरवाभाय १११
हथी पछारा इन दिल्ली में द्वारे पृथीराज के जाय॥
ऐसे नामी इन ऊदन का मारब नहींमनासिबआय ११२
इतना सुनिकै आल्हा ठाकुर जूरा पकड़ि तड़ाकालीन॥
खैंचिं तमाचा शिरमाँ मारा सुनवाँगमनमहलकोकीन ११३
मारन लाग्यो फिरि ऊदन को द्यावलि सुनत पहूँची आय॥
मोललकारा फिरि आल्हाको मारो नहीं बनाफरराय ११४
इतना सुनिकै आल्हा बोले माता बैठु धाम में जाय॥
जैसे ऊदन तुम को प्यारे तैसे पूत हमारो आय ११५
हम समुझावा भल ऊदन को तुम ना जाउ लहुरवा भाय॥
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इन्दलहरण। ३२७
