पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३३०

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इन्दलहरण । ३२७ हाथ जोरिके ऊदन बोले चरणन बार बार शिरनाय १०४ मोहलति पावों छा महिना कै इन्दल खोजिदिखाओं आय ।। इतना सुनिकै आल्हा जरिगे अपनो कोड़ा लीनउठाय १०५ पीटन लाग्यो जब ऊदन को सुनवाँ सुनत गैई तहँ आय ॥ · कहि समुझायो सो आल्हाको आल्हातुरतदीन दुरियाय १०६ टरिजा टरिजा री सम्मुख ते नहिं शिरकाटिदेउँ भुइँ डारि ॥ ऊदन मारा है इन्दल को साँचीखबरि मिलीम्बहिनारि १०७ सुनवाँ बोली फिरि पाल्हाते साँची सुनो बनाफरराय ।। हम तुम जी हैं जो दुनिया में हैहैं पुत्र नाथ अधिकाय १८ मिली सहोदर फिरि भाई ना आई कौन साँकरे काज ॥ सुन्दरगढ़ को चाचा हमरो तुमको कैदकीन महराज १०३ बनि सौदागर उदयसिंह ने तुम्हरी कैद दीन छुड़वाय ॥ बराबरस के ऊदन गकुर माड़ोलीन वापका दायँ ११० लड़ि गजराजा सों ऊदन ने मलखे ब्याह दीन करवाय ॥ नरपति राजासों लड़िकै फिरि फुलवालये लहुरवाभाय १११ हथी पछारा इन दिल्ली में द्विारे पृथीराज के जाय ।। ऐसे नामी इन ऊदन का मारव नहींमनासिवआय ११२ इतना सुनिकै आल्हा ठाकुर जूरा पकड़ि तड़ाकालीन ॥ बँचिं तमाचा शिरमाँ मारा सुनवागमनमहलकोकीन११३ मारन लाग्यो फिरि ऊदन को द्यावलि सुनत पहूँची आय ।। मोललकारा फिरि पाल्हाको मारो नहीं बनाफरराय ११४ इतना सुनिकै आल्हा बोले माता तु धाम में जाय ।। जैसे ऊदन तुम को प्यारे तैसे पूत हमारो आय ११५ हम समुझावा भल ऊदन को तुम ना जाउ लहुरखा भाय।। "