पूत हमारे के मारन को ऊदन मेला गये लिवाय ११६
बातैं सुनिकै ये आल्हा की द्यावलि ठाढ़ि रही शिरनाय॥
ऊदन ठाकुर को आल्हा ने कोड़न चर्सा दीनउड़ाय ११७
ओ ललकारा फिरि ऊदन को आल्हा दाँतन ओठ चबाय॥
धिक धिक तेरी रजपूती का इन्दल बिना पहूँचे आय ११८
दशहरिपुरवा अब आये ना नहिंहनिडरों खड्ग के घाय॥
जहँ मनभावै तहँ चलिजावै साँची शपथ शारदामाय ११९
सुनिकै बातैं ये आल्हा की ऊदन चला बहुत घबड़ाय॥
सुनवाँ फुलवा द्यावलि तीनों पृथ्वी गिरीं पछारा खाय १२०
देबा ऊदन दोऊ ठाकुर सिरसागढ़ै पहूँचे जाय॥
खबरि पायकै मलखाने ने फाटकवन्दलीन करबाय १२१
यह गति दीख्यो उदयसिंहने ठाढ़ो लाग तहाँ पछिताय॥
कोऊ साथी नहिं बिपदा में यह देबाते कह्यो सुनाय १२२
सवैया॥
जाकि सुता हरिके गृह शोभित चन्द्रललाट महेश प्रवीनो।
इन्द्र गयन्द दयो हय रबिको देवन धेनु ढुमादिक दीनो॥
शिरी मुनिरायजू कोपकिह्यो तब गण्डकधारि सबै जलपीनो।
एते बड़ेको बिपत्तिपरी तब सिंधु कि काहु सहाय न कीनो १२३



इतना सुनिकै देबा बोला साँची सुनो लहुरवा भाय॥
साथ तुम्हारो हम छाँड़व ना चहुतनधजीधजीउड़िजाय १२४
पै हम बांचे बहु पुराण हैं देखी कथा अनेकन भाय॥
बिपतिमें साथी कोउ बिरलाहै साॅची सुनो बनाफरराय १२५