सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३
इन्दलहरण। ३२९

सवैया॥

रागवही ज्यहि रामबसैं अरुध्यान वही जो धनी के धरेका।
प्रीति वही जो सदा निवहै अरु दाग वही कटु बचनकहेका॥
सुखसम्पत्ति अनेक भरी पर आवै नहीं कोउ काम परेका।
काहेकोआदम शोचतहै कोउ मित्रनहीं है बिपत्ति परेका १२६
ठाकुर वही जो दुख सुख बूझै सेवक वो मनलाग रहेका।
भाई वही जो भारहि खैंचत पुत्र वही परिवार बढ़ेगा॥
नारी वही जो जरै पियके सँग शूर वही सनमुक्खलड़ेका।
सम्पतिमेंतो अनेकमिलैं पर मित्रवही जो बिपत्ति परेका १२७



इतना सुनिकै ऊदन बोले साँची कही समय की बात॥
अब मन भाई यह हमरे है नरवर चलैं आजहीतात १२८
यह मन भाय गई देबाके दोऊ भये बेगि तय्यार॥
सात रोजकी मैजलि करिकै नरवर पहुँचिगये सरदार १२९
यह सुधि पहुँची जब मोहबे में आल्हा तजा लहुरवाभाय॥
बारहु रानिन सों परिमालिक महलन गिरे मूर्च्छाखाय १३०
तुरत पालकी को मँगवायो दशहरिपुरै पहूँचे जाय॥
औधिरकाल्यो भल आल्हा को रहिगा चुप्प बनाफरराय १३१
कायल ह्वैगै आल्हाठाकुर राजा लौटि परा पछिताय॥
ऊदन बैठे ह्याँ कुँवना पर हिरिया गई तहाँ परआय १३२
देखिकै सूरति बघऊदन के हिरिया गई तुरत पहिंचान॥
हँसिकै हिरिया बोलन लागी साँचीसुनोबनाफरज्वान १३३
कौनि मुसीबत तुमपर परिगै जो तजि दियो ढालतलवार॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले मालिनिठीककहैयहिबार १३४