पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३३२

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इन्दलहरण । ३२६ १३ सवैया॥ रागवही ज्यहि रामवसे अरुध्यान वही जो धनी के धरेका । भीति वही जो सदा निवहै अरु दाग वही कटु वचनकहेका ।। सुखसम्पत्ति अनेक भरी पर आवै नहीं कोउ काम परेका । काहेकोआदम शोचत कोउमित्र नहीं है विपत्ति परेका १२६ ठाकुर वही जो दुख सुख बूम सेवक वो मनलाग रहेका। भाई वही जो भारहि बँचत पुत्र वही परिवार बढ़ेगा। नारी वही जो जरै. पियके सँग शूर वही सनमुक्खलड़ेका । सम्पतितो अनेकमिलें पर मित्रवही जो विपत्ति परेका १२७ इतना सुनिके ऊदन बोले साँची कही समय की बात ॥ अब मन भाई यह हमरे है नरवर चलें आजहीतात १२८ . यह मन भाय गई देवाके दोऊ भये बेगि तय्यार।। सात रोजकी मैजलि करिक नरवर पहुँचिगये सरदार १२६ यह सुधि पहुँची जव मोहवे में आल्हा तजा लहुखाभाय ।। चारहु रानिन सों परिमालिक महलन गिरे मू खाय १३० तुरत पालकी को मँगवायो दशहरिपुरै पहूँवे जाय ॥ औधिरकाल्यो मल आल्हा को रहिगा चुप्प बनाफरराय १२१ कायल द्वैगे आल्हाठाकुर राजा लौटि परा पछिताय ।। ऊदन बैठे ह्याँ कुँवना पर हिरिया गई तहाँ परआय १३२ देखिकै सूरति बघऊदन के हिरिया गई तुरत पहिचान ॥ सिकै हिरिया बोलन लागी साँचीसुनोवनाफरमान १३३ कौनि मुसीवत तुमपर परिंग जो तजि दियो ढालतलवार॥ इतना सुनिक ऊदन बोले मालिनिठीककहेयहिवार १३?