पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

माल्हखण्ड।३३० परी मुसीवत हमरे ऊपर पृथ्वी मोहवा लीन लुटाय॥ ॥ घोड़ दुला फुलवा सुनवाँ लीन्ह्योजीति पिथौराराय १३५ करब नौकरी हम मकरंद के महलन खबरि जनावै जाय ॥ इतना सुनिक हिरियामालिनि महलन अटीतुरतहीआय १३६ जहँ पर माता मकरन्दाकी ऊदन कथा गई तहँ गाय॥ पावन सुनिकै बघऊदन का मातामकरंदलीन बुलाय १३७ जो कछ गाथा मालिनि भाषी माता मकरंदगई सुनाय॥ इतना सुनिकै मकरंद चलिभा कुँवना उपर पहूँचाआय १३८ कुशल प्रश्न करि सव आपस में मकरंद बोला अतिघबड़ाय ।। हाल बतावो ऊदनठाकुर हमरे धीर धरा ना जाय ९३६ हिरियामालिनि की बात सुनि माता वैठि महल पछिताय ।। इतना सुनिक ऊदन बोले मालिनिवातदिल्लगीमाय१४० सुनिक बातें वघऊदन की मकरंद घरका चलालिवाय॥ ऊदन पहुँचे रनिवासे में देवा टिका द्वार पर आय १४१ हाल बतायो सब महलन में जैसे इन्दल गये हिराय ।। मारा पीटा जस आल्हा ने सोऊ कथा गये सवगाय १४२ वनी रसोई फिरि महलन में संध्याकाल पहूँचा आय ।। मकरंद ऊदन भोजन करिके . सोये विकट नींदको पाय १४३ चले दिवाकर घर अपने को पक्षिन लियो बसेरा धाय ।। लिहे अञ्जली दोउ हाथन में सुरजनअर्घदेय दिजराय १४४ खेत टिगा दिननायक सों झंडा गढ़ा निशाको आय ।। तारागण सब चमकन लागे सन्तनधुनी दीनपरचाय १४५ परे आलसी निजनिज शय्या घों घों कण्ठ रहे घर्राय।। गुरू पिता दोऊ पद जिनके तिनकेचरणनशीशनवाय१५६