पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इन्दलहरण । ३३१ करों तरंग यहाँ सों पूरण तवपद सुमिरि भवानीकन्त ।। राम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरि भगवन्त १४७ इति श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई ) मुशीनवलकिशोरात्मजबावू प्रयागनारायणजीकीआज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गतड़रीकलां निवासिमिश्रवंशोद्भव बुधकृपाशङ्करम्नुपण्डितललिताप्रसाद कृतऊदननरवरगमनवर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १॥ सवैया ।। कौनफली सबकाल बली यहि पुण्यथलीमनमाँझ विचारा। निदिकै काहि बखानकरों क्यहि कौनसों बैरकरों यहिबारा ।। याहि लियों ठहराय मनै प्रभु एकसों एक हैं देव उदारा। बेद पुराण बतावत हैं ललिते सब ते बदिक ॐकारा १ सुमिरन ॥ इकलो अक्षर ॐकार को अब हम शिरसों करें प्रणाम ।। ब्रह्मा विष्णु औ शिवशंकर दुर्गा केर ताहि में धाम १ एक मात्रा में शिवशंकर दुर्गा अर्द्ध करें विश्राम ।। एक मात्रा में ब्रह्माजी , एक म रहैं हमारे राम २ इकलो अक्षर यहु जो ध्यावै पूरण होय तामु के काम ॥ यहिते वढिकै हिन्दूमन में दूसर नहीं बेद मैं नाम ३ अज अविनाशी घट घट वासी पूरण ब्रह्म चराचर राम ।। वेद व्याकरण दोउ साखी हैं खण्डनकर कौन यह नाम ४ नाम न रहै जब दुनियाँ मा तब सब होइहैं पशू समान ॥ कीरति गावों बघऊदन के सुनिये ख्व ध्यानधरिज्वान ५ भय कथाप्रसंग ।। उदयदिवाकर भे पूरख में किरणनकीन जगत उजियारा। सोयके जागे बघऊदन तब प्रातःकृत्य कीन सरदार !