कुसुमारानी की पुरिया सों जादू गई तहां सब हारि २५
रूप उजागर सब गुण आगर नागर देशराज का लाल॥
विषय उमण्डी बलबण्डी जी रण्डी कुलै बिडम्बी बाल २६
ती सब देखैं बघऊदन को ननन वैनन सैन चलाय॥
धर्म न छाँड़ै यहु क्षत्री का ज्यहिकाकहीउदयासेंहराय २७
दीख कुदृष्टी ज्यहि ऊदन का त्यहिका डाटिदीन ततकाल॥
नैनन सैनन अरु वैनन में डिगेन सिद्धपुरुषक्यहुकाल २८
हम नहिं भोगी नर योगी हैं रोगी विषय भरी तू बाल॥
माता भगिनी अरु कन्यासम देखैं तीनिभाव सबकाल २९
तपै बिखण्डी पररण्डी है भण्डी नरक केरि अधिकाय॥
यह हम जानतहैं नीकी विधि तुमने साँच देयँ बतलाय ३०
बातैं सुनिकै ई योगी की नारिन मूड़ लीन औंधाय॥
बोलि न आवा क्यहु नारी ते घर घर चलन लगीं शर्माय ३१
खबरि पायकै कान्तामल ने योगिन द्वार लीन बुलवाय॥
योगी आये जब द्वारे पर आसन तुरतदीन बिछवाय ३२
लैकै गडुवा दौरति आवा तुरतै पॉय पखारेसि आय॥
पैर धोयकै तिन योगिन का लै जलधाम छिनाकाजाय ३३
पढ़ै मनुस्मृति भलकान्तामल जाने अतिथिभाव अधिकाय॥
पै पहिंचानत त्यहि योगीथे मकरँद बार बार मुसुकाय ३४
यह गति दीख्यो मकरन्दाकै बोल्यो तुरत बनाफरराय॥
तुम पहिंचान्योनहिंमकरँदको तुमको देखि देखिमुसुकायँ ३५
पाय इशारा यहु ऊदन का मुरख तन दीख खूब धरिध्यान॥
देवा ऊदन मकान्दा का निश्चय फेरिलीन पहिंचान ३६
किह्यो खातिरी तब पहुनन कै लै रनिवास पहूँचा जाय॥
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आल्हखण्ड। ३३४
