पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३४०

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इन्दलहरण । ३३७ मुनिकै बानी महरानी के बोला तुरत बनाफरराय ६१ हमतो योगी बंगाले के जावें हरदार को माय ।। भिक्षावृत्ती करि हम खावें तुमते साँच दीन वतलाय ६२ रानी बोली फिरि योगिन ते वारे डारयो मूड़ मुड़ाय ॥ कौनि व्यवस्था तुमपर परिगै सोऊ साँव देउ बतलाय ६३ सुनिकै बानी यह रानी के बोला मैनपुरी चौहान । गीता गायो जो अर्जुन ते स्वामी कृष्णचन्द्र भगवान ६४ पदि पढ़ि गीता बैरागी है हम सब लीन योग को धार ॥ लिखी विधाता की मेटै को रानी मानो कही हमार ६५ इतना सुनिकै रानी बोली अब तुम भजन सुनावोगाय ॥ बातें सुनिकै महरानी की नाचनलाग लहुरखा भाय ६६ बेटी आई अभिनन्दन के देखै सोऊ तमाशा धाय ।। वाजे खझड़ी तहँ देवा के मकरंद डमरू रहा वजाय ६७ भैरोंवाली पुरिया डारी सबकी मुधियुधि गई हिराय ।। तब बेटी ते , भोजन हमै देउ करवाय ६८ कीनि तयारी जब ब्यारी के लाग्यो चित्त त मचलाय॥ कलके भूखे हम गावत हैं भारी भयन पेटके घाय ६६ मुनिक बातें ये ऊदन की बेटी चलि भै साथ लिवाय॥ जायकै पहुँची पँचमहलापर पीढ़ा तहाँ दीन डरवाय ७० ऊदन बोले तब वेटी ते तुमको मंत्र देय बतलाय ।। सुनिक बातें ई योगी की बेटी वाँदिन दीन हटाय ७१ ऊदन बोले तब बेटी ते हमते साँच देउ बतलाय ॥ इन्दलठाकुर तुम्हरे घर में ठहरे कौन जगहपर आय ७२ जोअभिलापा फिरि तुम्हरीहो अबही पूरि देय करवाय ।। ऊदन बोले २२