जो कछु कैहैं चाचा हमरे सो नहिं टरै भूमिटरिजाय ८५
बेटी बोली फिरि ऊदन ते चाचा साँच देयँ बतलाय॥
किरिया करलो तुम आवनकी तौ फिरि जावो इन्हैंलिवाय ८६
सुनिकै बातैं चितरेखा की ऊदन गङ्गालीन उठाय॥
सुवा बनायो तब बेटी ने पिंजरा तुरत दीन बैठाय ८७
मन्त्र बतायो फिरि ऊहन को औ लै पिंजरा दीन गहाय॥
ऊदन चलिभे फिरि महलन ते पहुँचे फेरि द्वार में आय ८८
पिंजरा दीख्यो जब देवाने तब मन खुशीभयोअधिकाय॥
गीत बंदमे फिरि योगिन के तहँते कूच दीन करवाय ८९
चारो योगी चलि मारग में बैठे एक बृक्षतर जाय॥
बाहर पिंजरा के सुवना करि ऊदन मानुष दीन बनाय ९०
मानुप ह्वैगे बघइन्दल जब तब सब खुशीमये अधिकाय॥
बिदामांगि कै कान्तामल फिरि झुन्नागढ़ै पहूँचा जाय ९१
ऊदन देवा इन्दल मकरँद चारो चले तहाँते ज्वान॥
आयकै पहुँचे सिरसागढ़ में जहँपर बसै वीरमलखान ९२
मलखे दीख्यो जब ऊदन को भेंट्यो बड़े प्रेमसों आय॥
देबा बोल्यो मलखाने ते तुम सुनिलेउ बनाफरराय ९३
बिपदा आई जब ऊदन पर फाटक बन्द लीन करवाय॥
यहु दिन लायो नारायण जब तब तुम मिले बनाफरराय ९४
कोऊ बिपदामा साथी ना साँचो साँच परा दिखराय॥
मलखे बोले तब देबा ते तुमको साँच देयँ बतलाय ९५
लपण राम की तुम गाथा को जानो भलीभांति सरदार॥
छोटेभाई हम आल्हा के यह सब जानिगयो संसार ९६
करैं लड़ाई बड़भाई ते तौ सब क्षत्रीधर्म नशाय॥
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इन्दलहरण। ३३९
