पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३४२

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इन्दलहरण । ३३६ जो कछु के चाचा हमरे सो नहिं टरै भूमिटरिजाय ८५ बेटी बोली फिरि उदन ते चाचा साँच देय बतलाय ॥ किरिया करलो तुम आवनकी तौफिरि जावो इन्हेंलिवाय ८६ · सुनिकै बातें चितरेखा की ऊदन' गझालीन उठाय ।। सुवा बनायो तब बेटी ने पिंजरा तुरत दीन बैठाय ८७ मन्त्र बतायो फिरि ऊहन को औ ले पिंजरा दीन गहाय ।। ऊदन चलिभे फिरि महलन ते पहुँचे फेरि द्वार में आय ८८ पिंजरा दीख्यो जब देवाने तब मन खुशीभयोअधिकाय ।। गीत बंदमे फिरि योगिन के तहते कूच दीन करवाय ८९ चारो योगी चलि मारग में बैठे एक बृक्षतर जाय ।। बाहर पिंजरा के सुवना करि ऊदन मानुष दीन बनाय ६० मानुप द्वैगे बघइन्दल जब तब सब खुशीमये अधिकाय॥ विदामांगि कै कान्तामल फिरि सुनागढ़े पहूँचा जाय ६१ ऊदन देवा इन्दल मकरंद चारो चले तहाँते ज्वान ।। आयकै पहुँचे सिरसागढ़ में जहँपर बसै वीरमलखान ६२ मलखे दीख्यो जब ऊदन को भेंट्यो बड़े प्रेमसों आय ॥ देवा बोल्यो मलखाने ते तुम सुनिलेउ बनाफरराय ६३ विपदा आई जब ऊदन पर फाटक बन्द लीन करवाय॥ यहु दिन लायो नारायण जब , तब तुम मिले बनाफरराय ६४ कोऊ विपदामा साथी ना साँचो साँच परा दिखराय ।। मलखे बोले तब देवा ते तुमको साँच देय बतलाय ६५ लपण राम की तुम गाथा को जानो भलीभांति सरदार ।। छोटेभाई हम आल्हा के यह सब जानिगयो संसार ९६ करें लड़ाई बड़भाई ते तो सब क्षत्रीधर्म नशाय ।।