पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आल्हखण्ड। ३४० धर्म न छाड्यो भीमसेन ने बनाँ रह्यो मूलफलखाय ६७ कियो दुर्दशा दुर्योधन ने योधन भीमसेन अधिकाय ।। हुकुम युधिष्ठिर का पायो ना आयो धन बल सवै गवाँय EE अब बतलावो तुम इन्दल को पायो खोज कहाँपर भाय ।। इतना सुनिक बघऊदन ने सवियाँ कथा दीनबतलाय EE मलखे बोले फिरि ऊदन ते दशहरिपुर चलो तुम भाय।। ऊदन वोले मलखाने ते दादा साँच देय बतलाय १०० हमहूँ मकरंद नरवर जैवे इन्दल जावो आप लिवाय ।। कसम जो खाई चितरेखा ते करिवेव्याहतुम्हारो आय १०१ कहि समुझायो तुम दादा ते नरवर मिली उदयसिंहराय॥ इतना सुनिकै इन्दल बोले चाचा सुनो वनाफरराय १०२ तुम ना हो दशहरिपुर को तो इन्दल के जाय वलाय ।। कौन बुलाई घर इन्दल का वो बच्छ तडाकाआय १०३ सुनिक बातें बघइन्दल की ऊदन कहा बहुत समुझाय।। मलखे दादा के सँग जावो नखर मिलबतुम्हहमआय १०४ इतना कहिक बघऊदन ने तहँ ते कूच दीन कखाय ।। मकरंद ऊदन सिरसागढ़ ते नरवर गदै पहूंचे जाय १०५ मलखे देवा इन्दल ठाकुर' इनहून कुच दीन करवाय॥ लागि कचहरी परिमालिक के तीनों तहां पहूंचे आय १०६ राजा दीख्यो जव इन्दल को तवमन खुशीभयो अधिकाय॥ मलखे बोले तब राजा ते दोऊ हाथ जोरिशिरनाय १०७ सवैया॥ आज जो काज कियो वघऊदन लाजरही औ बढी प्रभुताई। राजन आपके पुण्य प्रकाशते भासरही जग में ठकुराई ।