धर्म न छाँड़्यो भीमसेन ने बनमाँ रह्यो मूलफलखाय ९७
किह्यो दुर्दशा दुर्योधन ने योधन भीमसेन अधिकाय॥
हुकुम युधिष्ठिर का पायो ना आयो धन बल सवै गवाँय ९८
अब बतलावो तुम इन्दल को पायो खोज कहाँपर भाय॥
इतना सुनिकै बघऊदन ने सबियाँ कथा दीनबतलाय ९९
मलखे बोले फिरि ऊदन ते दशहरिपुरै चलो तुम भाय॥
ऊदन बोले मलखाने ते दादा साँच देयँ बतलाय १००
हमहूँ मकरँद नरवर जैबे इन्दल जावो आप लिवाय॥
कसम जो खाई चितरेखा ते करिबेब्याहतुम्हारो आय १०१
कहि समुझायो तुम दादा ते नरवर मिली उदयसिंहराय॥
इतना सुनिकै इन्दल बोले चाचा सुनो बनाफरराय १०२
तुम ना हो दशहरिपुर को तौ इन्दल कै जाय बलाय॥
कौन बुलाई घर इन्दल का जेंवो बच्छ तड़ाकाआय १०३
सुनिकै बातैं बघइन्दल की ऊदन कहा बहुत समुझाय॥
मलखे दादा के सँग जावो नरवर मिलबतुम्हैंहमआय १०४
इतना कहिकै बघऊदन ने तहँ ते कूच दीन करवाय॥
मकरँद ऊदन सिरसागढ़ ते नरवर गढ़ै पहूंचे जाय १०५
मलखे देबा इन्दल ठाकुर इनहून कुच दीन करवाय॥
लागि कचहरी परिमालिक के तीनों तहां पहूंचे आय १०६
राजा दीख्यो जब इन्दल को तब मन खुशीभयो अधिकाय॥
मलखे बोले तब राजा ते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय १०७
सवैया॥
आज जो काज कियो बघऊदन लाजरही औ बढी प्रभुताई।
राजन आपके पुण्य प्रकाशते भासरही जग में ठकुराई॥