पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३४५

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२६ आल्ह खण्ड।३४२ यह सब जानतहैं अपने मन कलियुगअधिकरलपटाय ११६ खायँ पहारा मन कलियुग में जप तप पुण्य देय विसराय ॥ कोऊ ज्ञानी अरु ध्यानी ना रघुवर पार लगावें भाय १२० यह संजीवनि जबतक रहिहै रघुवर नाम चितवन भाय ॥ यहि परितापी अरु पापी ते कोउकोउवचीसमरमेंआय१२१ कलह करायो यहि कलियुगने ऊदन नहीं परें दिखराय ।। इतना सुनिक मलखे बोले दोऊ हाथजोरि शिस्नाय १२२ गये बनाफर हैं नरवरगढ़ मकरंद ठाकुर गये लिवाय। किडो शिकायत नहिं ऊदनने यहसब भाग्य करावे भाय१२३ पूर शनैश्चर माहिल मामा सोना लखत ल्वाह हैजाय । आय हकीकी यहु मल्हना का फीकीकहै रातदिन भाय १२४ पै अरसान्यो त्यहि ऊंदन ना क्षत्री रूप लहुरखा भाय । तुम कछु शोचो अव दादा ना होनी मेटि कौन जाय १२५ यह अनहोनी शुभदाई भै इन्दल व्याह करो अबभाय ॥ ऊदन मिलि हे नरवरगढ़ माँ साँचोमिलनदीनबतलाय १२६ बहु शिरनाई यह गाई है दादै आप बुझायो जाय॥ मोरि ढिठाई जड़ताई को करि हैं क्षमा बनाफरराय १२७ कसम जो खाई चितरेखा सँग' करिवे व्याह तुम्हारो आय॥ आयसु पार्दै जो दादाकी राजन न्यवतदेय पाय १२८ आल्हा बोले मलखाने ते पहिले हाल देउ बतलाय ।। कौन देश को इन्दल हरिगे मिलिगेकोनरीतिसोभाय १२६ कळू हकीकति तुम गाई ना भवहीं न्यवत पठायो भाय।। इतना सुनिक मलखे ठाकुर दोऊहाथ जोरि शिस्नाय १३० - जितनी कीरति बघऊदन की सो भाल्हा को गये सुनाय ।।