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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३४५

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आल्हखण्ड। ३४२

यहु सब जानतहैं अपने मन कलियुगअधिक२लपटाय ११९
खायँ पछारा मन कलियुग में जप तप पुण्य देयँ बिसराय॥
कोऊ ज्ञानी अरु ध्यानी ना रघुवर पार लगावैं भाय १२०
यह संजीवनि जबतक रहिहै रघुवर नाम चिंतवन भाय॥
यहि परितापी अरु पापी ते कोउकोउबचीसमरमेंआय १२१
कलह करायो यहि कलियुगने ऊदन नहीं परैं दिखराय॥
इतना सुनिकै मलखे बोले दोऊ हाथजोरि शिरनाय १२२
गये बनाफर हैं नरवरगढ़ मकरँद ठाकुर गये लिवाय॥
किह्यो शिकायत नहिं ऊदनने यह सब भाग्य करावै भाय १२३
पूर शनैश्चर माहिल मामा सोना लखत ल्वाह ह्वैजाय॥
आय हकीकी यहु मल्हना का फीकीकहै रातदिन भाय १२४
पै अरसान्यो त्यहि ऊदन ना क्षत्री रूप लहुरवा भाय॥
तुम कछु शोचो अब दादा ना होनी मेटि कौनपै जाय १२५
यह अनहोनी शुभदाई भै इन्दल ब्याह करो अबभाय॥
ऊदन मिलि हैं नरवरगढ़ माँ साँचोमिलनदीनबतलाय १२६
बहु शिरनाई यह गाई है दादै आप बुझायो जाय॥
मोरि ढिठाई जड़ताई को करि हैं क्षमा बनाफरराय १२७
कसम जो खाई चितरेखा सँग करिवे व्याह तुम्हारो आय॥
आयसु पावैं जो दादाकी राजन न्यवतदेयँ पठवाय १२८
आल्हा बोले मलखाने ते पहिले हाल देउ बतलाय॥
कौन देश को इन्दल हरिगे मिलिगेकौनरीतिसोंभाय १२९
कछू हकीकति तुम गाई ना अवहीं न्यवत पठावो भाय॥
इतना सुनिकै मलखे ठाकुर दोऊहाथ जोरि शिरनाय १३०
जितनी कीरति बघऊदन की सो आल्हा को गये सुनाय॥