हाल जानि कै आल्हा ठाकुर मनमेंसोचिसाचिअधिकाय १३१
आयसु दीन्ह्यो मलखाने को भावै करो तौन तुम भाय॥
इतना सुनिक मलखे चलि भे सुनवाँ महल पहूँचे जाय १३२
सुनवाँ दीख्यो मलखाने को आदर भाव कीन अधिकाय॥
हाथ पकरिकै फिरि इन्दल का मलखे भाभीदीन गहाय १३३
यह गति जानैं नारायण फिरि कितनी खुशीभई अधिकाय॥
पूँछन लागी जब ऊदन का मलखेगये कथा सब गाय १३४
अब सुखदाई दिन आवा है भौजी पूत बिवाहब जाय॥
कायल ह्वैकै बड़भाई ने हमते हुकुमदीन फरमाय १३५
यही महीना मा भौंरी हैं पण्डित साइति दीन बताय॥
करो तयारी अब ब्याहे की नरवर मिली बनाफरराय १३६
नाम बनाफर का सुनतैखन फुलवा तहाँ पहूँची आय॥
जितनी गाथा बघऊदन की बाँदिनतहां दीनबतलाय १३७
बड़ी खुशाली भै फुलवा के द्यावलि बार बार बलिजाय॥
तहँते चलिकै मलखे ठाकुर पण्डिततुरतलीनबुलवाय १३८
छिकै साइति मलखे ठाकुर राजन न्यवन दीन पठवाय॥
ब्याह नगीचे न्यवतहरी सब दशहरिपुरै पहूंचेआय १३९
माँय मन्तरा कै ब्यरिया भै पण्डित अटा तड़ाका आय॥
रानी आई मोहबे वाली भारी भीर भई अधिकाय १४०
करि अवलम्बा जगदम्बा का अम्बा बार बार शिरनाय॥
भई तयारी फिरि ब्याहे की इन्दलचढ़ापालकी जाय १४१
बाजे डंका अहतंका के हाहाकार शब्द गा छाय॥
कुँवाँ बिवाह्यो फिरि इन्दल ने सुनवाँ पैर दीन लटकाय १४२
यही नेग जब पूरा ह्वैगा इन्दल चढ़ा पालकी आय॥
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इन्दलहरण। ३४३
