मरा मुकुन्दा रण खेतनमें सुद्धृत ठाकुर चला रिसाय॥
तब ललकारा त्यहि हिरसिंहने ठाकुर खबरदार ह्वैजाय ६१
जयो नगीचे ना डोलाके नहिं शिर धरती देउँ गिराय॥
सुनिकै बातैं ये हिरसिंह की सुद्धृत भाला लीन उठाय ६२
ताकिकै मारा सो हिरसिंह के ठाकुर लैगा बार बचाय॥
खाली वार परी सुद्धृत की तबमनगयो सनाकाखाय ६३
ऐंचि सिरोही फिरि कम्मर सों मारा हरीसिंह को जाय॥
बचिगा ठाकुर फिरि दिल्लीका औमनकोपकीनअधिकाय ६४
खैंचिकैमारा तलवारी को सुद्धृत गिरा धरणि भहराय॥
मरिगा अकुर जब कनउज का आयो हमाँ जगाँ तब धाय ६५
हमाँ जमाँ के तर मुर्चा में गोविंद नृपति पहूँचा आय॥
औ ललकारा फिर शूरन को तुरतै डोला लेउ उठाय ६६
डोला उठायो रण शूरन ने औ दिल्ली को चले दबाय॥
हमाँ जमॉ तब निज शून ते बोले दोऊ भुजा उठाय ६७
जान न पावैं दिल्ली वाले मारो इनका खेत खेलाय॥
सुनिकै बातैं हमाँ जमाँ की क्रोधित चले सिपाहीधाय ६८
चलीं जुनब्बी औ गुजराती ऊना चलै बिलाइति क्यार॥
भाला बरछिन की मारुइ भइँ कोताखानी चलैं कटार ६९
कटि कटि क्षत्री गिरे खेत माँ हाथिन लागे ऊंब पहार॥
पैदल पैदल सों मारुइ भइँ ओं असबार साथ असबार ७०
विकट लड़ाई क्षत्रिन कीन्ह्यो देवता कांपि उठे असमान॥
शूर सिपाही ईजति वाले तिनतजिदीनआसराप्रान ७१
मान न रहिगे कोउ क्षत्री के सब के टूटि गये अभिमान॥
पृथुइराज औ जयचँद राजा दोऊ दीन लड़ाई ठान ७२
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आल्हखणड।
