पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इन्दलहरण । ३४७ रणकी मौहरि वाजन लागी रणका होनलाग व्यवहार१७६ बलखबुखारे का अभिनन्दन सोऊ गयो समर में आय ।। प्रथम लड़ाई में तोपन के धुवना रहा सरगमें छाय १८० लागै गोला ज्यहि हाथी के मानो च्चार सेंधिकैजाय ।। जउने ऊँट के गोला लागै तुरतैगिरै समर अललाय १८१ गोला लागै ज्यहि क्षत्री के धुनकत सई सरिरोगाडिजाय ।।। लागै गोला ज्यहि -घोड़ाके मानों गिरह कबूतरखाय १८२. जौने स्थमा गोला लागै पहिया धुरी अलग लैजाय । गिरें कगारा जस नदिया में तैसे गिरें ऊँट गजधाय १८३ सन् सन् सन् सन् गोलीछूटें लोटें शूर पछाराखाय ॥ छाँड़ि आसरा जिंदगानी का खेलनलागेल्वाह अघाय१८४ भाला बलछी छूटन लागे कहुँ कहुँ कड़ाबीन की मार ॥ मारै तेगा बर्दवानका ऊना चलै विलाइति क्यार१८५ चले कटारी बूंदी वाली अंधाधुंध चले तलवार । मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार १८६ बड़ी लड़ाई अभिनन्दन की नदिया वही रक्ककी धार । फिरि फिरि मार औ ललकारें नाहर उदयसिंह सरदार १८७ सातौ लड़िका अभिनन्दन के आमाझ्धार करें तलवार ।। चढ़ा चौंडिया इकदन्तापर कशीजौनु पिथौराक्यार१८८ हनि हनि मारै रजपूतन का चौड़ा समरधनी मैदान । कागति बरणों में देवाकै ठाकुर मैनपुरी चौहान १८६ हंसा. ठाकुर के मुर्चापर पहुँचा समरधनी मलखान । घोड़ी कबुनरी टापन मारे घायलहोयँअनेकन ज्वान१६० को गति वरणे मलखाने के बेग बच्छराज का लाल ।