सवैया॥
आमको खम्भगड़ो तहँ सुन्दर माड़व मालिन ठीक बनायो।
कै गठि बन्धन बैठिगयो नृप स्वच्छ कुशानिज हाथ उठायो॥
दान दयेउ कन्या अभिनन्दन बन्दन कै रघुनाथ मनायो।
चन्दन अक्षत फूलनलै ललिते मनमोद गणेशचढ़ायो २२७



बड़ी खुशी सों अभिनन्दनने बेटी ब्याह दीन करवाय॥
बिदा करायो चितरेखा को औधनदीन्ह्योखूबलुटाय २२८
भये अयाचक सब याचक गण जय जयकार रहे सब गाय॥
बाजे डंका अहतंका के आल्हा कूचदीनकरवाय २२९
एक महीना के भीतर में दशहरि पुरै पहूंचे आय॥
परछन करिकै दरवाजे सों सुनवाँ लैगय बधूलिवाय २३०
दगीं सलामी की तोपैं बहु धुवना रहा रगमें छाय॥
मनियादेवन की पूजाकरि बैठीं धाम आपने आय २३१
आल्हा बैठे फिरि महलन में ऊदन बैठे शीश नवाय॥
माहिलगकुर की गाथा को आल्हाठाकुर दीनसुनाय २३२
चुगुलशिरोमणि माहिलठाकुर ठाकुर रहे तहाँ सब गाय॥
होय भलाई मम चुगुलिन में इतनाकहा लहुरवाभाय २३३
खेत छूटिगा दिन नायक सों झंडा गड़ा निशाको आय॥
ब्याहपूर भा अब इन्दल का सुमिरों तुम्हें शारदामाय २३४
पारलगायो महरानी तुम दानीयुगन युगन अधिकाय॥
कोउअभिमानीजगरहिगा ना ज्यहिपरकोपकीनतुममाय २३५
आशिर्बाद देउँ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायण भाय॥
हुकुम तुम्हारो जो पावत ना ललितेकहतकथाकसगाय २३६