पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३५५

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आल्ह खण्ड । ३५२ रहै समुन्दर में जबलों जल जवलों रहँ चन्द श्री सूर ।। मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रही सदाभरपूर २३७ माथ नवावों पितु अपने को ह्यांते करों तरंग को अन्त ।। राम रमा मिलि दर्शन देखें इच्छा यही भवानीकन्त २३६ इति श्रीलखनऊनिवासि सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजवावमयागनारायण जीकीआज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गत पंडरीकलां निवासि मिश्रवंशोद्भव बुध कपाशङ्कर सून पं० ललिताप्रसादकन इन्दलपाणिग्रहण वर्णनोनामद्वितीयस्तरंगः २॥ इन्दलहरण सम्पूर्ण शुभमस्तु । इति ॥