पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३५६

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अथ पाल्हखण्ड॥ आल्हानिकासी॥ संवेया॥ राम औ श्याम अकाम भजै सो त जगके सब पातकमाई । बामन पद प्रक्षालनके जलसों भइ गंग पुराणन गाई ॥ ज्ञात सवै विख्यात सक्य ललिते ज्यहि भांति धरापरआई। गाई बताई न जाय कळू अब कीरति गंग धरापर छाई १ सुमिरन॥ प्याय भवानी शिवशंकर को सुमिरन करें गंगको भाय ।। सो तरिजावे भवसागर सों पावै अमर रूपको जाय । गावै नित प्रति रघुनन्दन को नरपुर फेरि न जन्मै आय॥ बड़ा महातम रघुनन्दन न नारद वालमीकि कहगाय २ गीधअजामिल शररीगणिका चारो कीरति रहे बताय ।। कलियुग तुलसीकी समताको दूसर कौन बतावा जाय ३