पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३५७

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आल्हवण्ड । ३५४ तेसे कीरति यदुनन्दन की द्वापर फेलिगई अधिकाय ॥ सूर औं मीराबाई कलियुग पायो स्वाद भूमिमें आय ४ ललिते चक्खन को ललचायो गायो आल्हा छन्द बनाय॥ कहाँ निकासी अब आल्हा के सुमिरन देवनको विसराय ५ अथ कथामसंग ।। एक समइया की बातें हैं यारो मानो कही हमार ॥ लिल्ली घोड़ीपर चदि बैठो माहिल उरई का सरदार ? तितितितिक्टिटुईहाँकत दिल्ली शहर पहूँचा जाय । लागिकचहरी दिल्लीपति की जिनका कही पिथौराराय २ श्रावत दीख्यो तिन माहिलका अपने पास लीन बैठाय ॥ बड़ी खातिरी करि माहिल के पूंछन लाग पिथौराराय ३ काहे आये उरई वाले आपन हाल देउ बतलाय॥ इतना सुनिक माहिल बोले साँची सुनो पिथौराराय " मलखे सुलखे आल्हा ऊदन इनका दीखे देश डेराय ॥ आज बनाफर की समता को ठाकुर आन नहीं दिखलाय ५ चार चौहदी के डॉड़े पर मलखे किलालीन बनवाय ॥ जो कछु चाह आल्हा ऊदन सो सब करिके दे दिखाय ६ कौन दुसरिहा है आल्हा का सम्मुख बात करे जो जाय ॥ मान न रहिगे क्याहु नरेश के चारो बढ़े बनाफरराय ७ हमका मान भल मामा करि खातिर को रोज अधिकाय ।। इमहूं जानत हैं ब्रह्मा सम राजन साँच दीन बतलाय अधिक पियारे पै तिनते तुम मानो कही पिथोराराय ॥ तुम्हें लरिकई सों जानत हो सीधो सादो आप स्वभाय । - तिनकी धरती का स्वामी में त्यहिका पास लियो मैठाय ॥