पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३५८

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बाल्हिानिकासी। ३५५ तुमं असे राजा को दुनियामा ज्यहितेप्रीतिकरॉअधिकाय १० इतना सुनिकै पिरथी बोले माहिल उरई के सरदार ॥ यतन वतावो यहि समया में जासों जायँ बनाफर हार ११ इतना सुनिक माहिल बोले यानो कही पिथोराराय ॥ पाँच बछेड़ा मोहवे वाले तिनका भाप लेउ मँगवाय १२ दुल हंसामनि हरनागर पपिहा और कबूतरि पाँच ॥ उड़न बछेड़ा ये पाँचों हैं इनवल लड़ें बनाफर साँच १३ पाँचो घोड़न के पाये ते साँचो विजय होय महराज ॥ जीति न पैहो तिन पाँचो ते साँचोसाँच पाँच शिरताज ११ इतना सुनिके पिरथीपतिने तुरतै लीन्ही कलम उठाय ।। लिखिकै चिट्ठी परिमालिकको औमाहिलको दीनसुनाय १५ सुनिकै चिट्ठी पिरथीपतिकै माहिल बड़ा खुशी लैजाय । तुरतै धावन को बुलवायो पिरथी चिट्ठी दीन पठाय १६ लेके चिट्ठी धावन चलिभा पहुँचा नगर मोहोबे प्राय ।। जहाँ कचहरी परिमालिक के धावन तहाँ पहूँचा जाय १७ कीन दण्डवत महराजा को चिट्ठी फेरि दीन पकराय ।। लेके चिट्ठी पृथीराज की ऑकुइआँकुनजरिकैजाय १० तुरत बुलायो निज धावन को की आल्हा को लाउ बुलाय ।। इतना सुनिक धावन चलिभा दशहरिपुरै पहूँचा जाय १६ तुम्हें बुलावत महराजा हैं यह आल्हा ते कह्यो सुनाथ ॥ इतना सुनिकै आल्हा ऊदन पहुँचे नगर मोहोबे आय २० जहाँ कचहरी परिमालिक की दूनों गये बनाफरराय ।। हाथ जोरिक आल्हा ऊदन गढ़े भये शीश को नाय २१ माल्हा बोले परिमालिक ते राजन साँच देउ बलाय॥