तुम अस राजा को दुनियामाँ ज्यहितेप्रीतिकरोंअधिकाय १०
इतना सुनिकै पिरथी बोले माहिल उरई के सरदार॥
यतन बतावो यहि समया में जासों जायँ बनाफर हार ११
इतना सुनिकै माहिल बोले मानो कही पिथोराराय॥
पाँच बछेड़ा मोहबे वाले तिनका आप लेउ मँगवाय १२
बेंदुल हंसामनि हरनागर पपिहा और कबूतरि पाँच॥
उड़न बछेड़ा ये पाँचों हैं इनवल लड़ैं बनाफर साँच १३
पाँचो घोड़न के पाये ते साँचो बिजय होय महराज॥
जीति न पैहौ तिन पाँचो ते साँचोसाँच पाँच शिरताज १४
इतना सुनिकै पिरथीपतिने तुरतै लीन्ही कलम उठाय॥
लिखिकै चिट्ठी परिमालिकको औ माहिलको दीनसुनाय १५
सुनिकै चिट्ठी पिरथीपतिकै माहिल बड़ा खुशी ह्वैजाय॥
तुरतै धावन को बुलवायो पिरथी चिट्ठी दीन पठाय १६
लैकै चिट्ठी धावन चलिभा पहुँचा नगर मोहोबे आय॥
जहाँ कचहरी परिमालिक कै धावन तहाँ पहूँचा जाय १७
कीन दण्डवत महराजा को चिट्ठी फेरि दीन पकराय॥
लैकै चिट्ठी पृथीराज की आँकुइआँकुनजरिकैजाय १८
तुरत बुलायो निज धावन को की आल्हा को लाउ बुलाय॥
इतना सुनिकै धावन चलिभा दशहरिपुरै पहूँचा जाय १९
तुम्हैं बुलावत महराजा हैं यह आल्हा ते कह्यो सुनाय॥
इतना सुनिकै आल्हा ऊदन पहुँचे नगर मोहोबे आय २०
जहाँ कचहरी परिमालिक की दूनों गये बनाफरराय॥
हाथ जोरिकै आल्हा ऊदन ठाढ़े भये शीश को नाय २१
आल्हा बोले परिमालिक ते राजन साँच देउ बतलाय॥
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आल्हानिकासी। ३५५
