पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३५९

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। . आल्हखण्ड-1३५६ कौनसी विपदा तुमपर आई जो सेवकको लीन बुलाय २१ इतना सुनिकै राजा बोले साँची सुनो बनाफरराय ॥ दुल हंसामनि हरनागर पपिहा और कबूतरि भाय २३ पाँचो घोड़ा पिरथी माँगे, सो अब दीन चही पहुँचाय । चिट्ठी आई महराजा की धावन बैठ बनाफरराय २४ इतना सुनिकै आल्हा बोले राजन साँच देय बतलाय ॥ अपने घोड़ा हम देवे ना चहु चढिअवै पिथोराराय २५ लड़ि भिडि लेवे हम पिरथी ते देवे समरभूमि समुझाय ॥ जियत न पाई कोउ घोड़नको साँची सुनो चंदेलेराय २६ इतना सुनिकै राजा बोले मानो कही बनाफरराय ॥ सरि मिटावो दै/घोड़न को यामें भलापरै दिखलाय २७ घोड़ा अइहैं नहिं दिल्ली को मोहवा तुरत लेउँ लुटवाय ॥ ऐसी चिट्ठी पृथीराज की सो पदिलेउ बनाफरराय २८ घोड़ा पैहैं जो पिरथी, ना मोहवा तुरत गाँसिह प्राय ॥ कितन्यो घोड़ा लड़ि मरिजै हैं ऐसे पाँच देउ पठवाय २९ अंकुश विषका तुम गाड़ो ना मानो कही बनाफरराय ॥ इतना सुनिकै ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिस्नाय ३० काह हकीकति है पिरथी के मोहवानगर मँझावै आय ।। दतिया जीति उरैछा जीत्यों जीत्यों सेतुबंधलों जाय ३१ जीति पेशावर मुलतानाली बूंदी थहर थहर थर्राय ।। राज्य कमायूका लै लीन्ह्यों झंडाअटक दियोंगड़वाय ३२ जितनी तिरिया है मेवात में संध्या समय नित्त पछितायें। काह हकीकति है पिरथी के दिल्ली काल्हिलेउँ लुटवाय ३३ १ एक पिथौरा के गिनती ना लाखन चढ़े पिथौरा भाय ॥ 5