सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१
संयोगिनिस्वयम्बर।

हमाँ जमाँ औ गोबिंद राजा दोऊ समरधनी बलवान॥
फिरि फिरि मारैं औ ललकारैं दोऊ एक बैस के ज्वान ७३
गदा बनेठी केर खिलारी करि पैंतड़ा लड़ैं मैदान॥
बारु बराबरि प्राणन जानैं एकते एक बढ़े अभिमान ७४
हमाँ जमाँ जब भाला मारैं गोबिंद राजा लेयँ बचाय॥
मारैं गोबिंद तलवारी सों सोऊ लेयँ ढाल पर आय ७५
बड़ी लड़ाई में गोबिंद कै हमरे बूत कही ना जाय॥
जो हम गावैं विस्तारित करि तौफिरिएकसाललगिजाय ७६
खैंचि सिरोही हमाँ जमाँ ने मार्यो बीच गला को ताकि॥
तबहीं शिर धरती माँ गिरिगा बोल्यो मारुमारु मुह हांकि ७७
बिन शिर धड़ रणमाँ तब दौरा हाथ में लिये ढाल तलवार॥
ज्यहि दिशिजावै रणमंडलमें त्यहिदिशिजू शूरअपार ७८
व्याकुल क्षत्री चौगिर्दा ते बिन शिर लड़ै वीरबलवान॥
शंका व्यापी रण शूरन के कायर भागे छांडि परान ७९
नील कि झंडी ताहि छुवायो छुवतै गिरा तुरत भहराय॥
तौलौं डोला संयोगिनि का लैगे ग्यरा कोस पर जाय ८०
तब महराजा कनउज वाला बोला सब सों वचन रिसाय॥
नालति ऐसी रजपूती का औधिरकाल जिंदगी भाय ८१
डोला जाई जो दिल्लीमाँ तो यश जाई सबै नशाय॥
मानुष देही फिरि मिलिहै ना तातेख्यालौ लोह अधाय ८२
वीर बखानों दुर्य्योधन को ज्यहियशआपनलीनवाय॥
जो कछु भाखा सो सब राखा औतजिदीन पुत्रधन भाय ८३
धन्य बखानों त्यहि रावण को ज्यहि हरिलीन रामकी नारि॥
सम्मुख जूझी त्यहि रय्यतिसत्र करिकै रामचन्द्र सों रारि ८४