देश देश में कानलड़ाई संकटपरा आजदिन आय ४६
जयचँदराजा कनउजवाला सोई एक मित्र दिखराय॥
दूसर कोऊ अस क्षत्री ना जो बिपदामें होय सहाय ४७
इतना सुनिकै आल्हा ठाकुर मनमाँ ठीक लीन ठहराय॥
चलिकै रहिये अब कनउजमें साँची कही लहुरवाभाय ४८
हमहूँ चाहत रहैं कनउज को तुमहूँ दीन स्वई बतलाय॥
पह मनभाई भल देबा के दशहरिपुरै पहूँचे आय ४९
बड़े प्रेमसों द्यावलिदौरी पूँछी कुशल दुवारेआय॥
आल्हाबोले तब द्यावलिते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ५०
मोहिं निकार्यो परिमालिकने अनुचितअनुचितकसमखवाय॥
आजु न रहिबे हम दशहरिपुर माता साँच दीन बतलाय ५१
द्यावलियोली फिरि आल्हाते काहे कह्यो चँदेलेराय॥
बात बतावो जो पूरी तुम तौ फिरि कूच देयँ करवाय ५२
इतना सुनिकै आल्हाठाकुर सवियाँ कथा गये तहँगाय॥
हाल जानिकै द्यावलि माता महलनहुकुमदीनफरमाय ५३
सुनवाँ फुलवा चित्तररेखा तीनों होवैं बेगितयार॥
मोहिं निकार्यो परिमालिक ने कीन्ह्योतनको नाहिंबिचार ५४
इतना सुनिक वॉदी दौरी महलन खबरि जनाईजाय॥
मुनवाँ फुलवा चित्तररेखा तीनों गईं सनाकाखाय ५५
होश छूटिगे ठकुरानिन के यहुका रंग भंग भो आय॥
तबतो गाथा सब आल्हाकी बाँदी तहाँ दीन समुझाय ५६
तब ठकुरानी मनसानी सब अपनो हर्ष शोक बिसराय॥
ढोलामँगायो बघऊदन ने सोऊ गयो तहाँपरआय ५७
भई तयारी फिरि जल्दी सों सबहिन कूच दीन करवाय॥
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आल्हखण्ड। ३५८
