पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३६१

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आल्हखण्ड । ३५८ देश देश में कानलड़ाई संकटपरा अाजदिन आय ४६ जयपदराजा कनउजवाला सोई एक मित्र दिखराय ।। दूसर कोऊ अस क्षत्री ना जो विपदामें होय सहाय ४७ इतना सुनिकै आल्हा ठाकुर मनमाँ ठीक लीन ठहराय ।। चलिक रहिये अब कनउजमें साँची कही लहुखाभाय ४८ हमहूँ चाहत रहँ कनउज को तुमहूँ दीन स्वई बतलाय ।। पह मनभाई भल देवा के दशहरिपुर पहूँचे आय ४६ बड़े प्रेमसों द्यावलिदौरी पूंछी कुशल दुवारेआय ॥ आल्हाबोले तब द्यावलिते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ५० मोहिं निकास्यो परिमालिकने अनुचितअनुचितकसमखवाय॥ आजु न रहिले हम दशहरिपुर माता साँच दीन बतलाय ५१ द्यायलियोली फिरि पाल्हाते काहे कह्यो चंदेलेराय ॥ बात बतावो जो पूरी तुम तो फिरि कूच देय करवाय ५२ इतना सुनिक' आल्हाठाकुर सवियाँ कथा गये तहँगाय ॥ हाल जानिक द्यावलि माता महलनहुकुमदीनफरमाय ५३ सुनवाँ फुलवा चिचररेखा तीनों होवें वेगिनयार ।। मोहिं निकारयो परिमालिक ने कीन्योतनको नाहिंविचार ५४ इतना सुनिक वॉदी दोरी महजन खबरि जनाईजाय ।। मुनवाँ फुलवा चित्तररेखा तीनों गई सनाकालाय ५५ होश टिगे ठकुरानिन के यहुका रंग भंग भो आय ॥ तवतो गाथा सब आल्हाकी बाँदी तहाँ दीन समुझाय ५६ तव ठकुरानी मनसानी सब अपनो हर्प शोक विसराय ।। रोलामगायो ववऊदन ने सोऊ गयो तहाँपरआय ५७ ई तयारी फिरि जस्दी सों सबहिन व दीन करवाय ।।